नीमच । युवा वर्ग रोजगार के लिए डिग्री प्राप्त कर महानगरों में पहुंचकर धन तो बहुत अधिक कमाई कर लेता है लेकिन उसे आत्म संतोष कहीं नहीं मिलता है। इसलिए बच्चों को धार्मिक संस्कार बचपन से ही सीखाना चाहिए ताकि जब वह बड़ा हो और अपने रोजगार से समय मिलने पर धार्मिक तपस्या भक्ति कर अपनी आत्म कल्याण भी जीवन के साथ-साथ कर सके। महानगरों में युवा वर्ग रोजगार के बाद ऊंचे ऊंचे मल्टी अपार्टमेंट में एक कमरे में बंद होकर रह जाता है वह समाज और दुनिया से अलग होता जाता है।
यह बात मुनि वैराग्य सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में शताब्दी वर्ष महोत्सव में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि छोटे नगरों में समाज का व्यक्ति काम से कम मंदिर पहुंचकर शांति विधान पूजा पाठ भक्ति तपस्या सत्संग आदि कार्यक्रमों में सहभागिता तो निभाता है और अपने आत्म कल्याण का मार्ग जीवन में नौकरी पेशा व्यवसाय के साथ-साथ कर पाता है। छोटे नगरों में युवा वर्ग धन कम कमाता है लेकिन यहां उसे आत्म संतोष का सच्चा सुख मिलता है जो महानगरों में नहीं मिलता है। महानगरों युवा वर्ग की जिंदगी मशीन बन गई है। वहां पर युवा वर्ग रोजगार के लिए 2 घंटे प्रतिदिन यातायात जाम में फंस कर भी एक जुनून के साथ दौड़ भाग करता है लेकिन शाम होते-होते पर इतना थक जाता है कि भक्ति तपस्या सत्संग की आराधना साधना भी नहीं कर पाता है और वह समाज की मुख्य धारा से अलग-अलग हो जाता है चिंतन का विषय है। मनुष्य के जीवन का अंत कब होगा किसी को पता नहीं होता है इसलिए मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षण में भक्ति तपस्या और सत्संग करते रहना चाहिए पता नहीं कौन सा पल अंतिम पल साबित हो जाए। मानव के मरते समय अंतिम समय जो कर्म उसके जीवन में चलता है वही उसे अगले जन्म में मिलता है।
इसलिए यदि मनुष्य जीवन के साथ-साथ भक्ति सत्संग तपस्या भी करता रहे तो उसके जीवन में आत्मा का कल्याण भी साथ-साथ हो सकता है। दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय कुमार विनायका जैन ब्रोकर्स मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि आचार्य वंदना आरती के साथ हुई।, सुबह मंगलाचरण, चित्रनावरण शताब्दी रजत प्रथमाचार्य 108 शांति सागर जी महाराज महामुनिराज का महा पूजन, शास्त्रदान के बाद प्रवचन हुए। मुनी सुप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि यदि हमें जीवन में आत्मा का कल्याण करना है तो खराब पाप कर्मों से दूर रहना होगा और संयम जीवन का पालन करना होगा। यदि हम साधु-संतों मुनियों के मौर पीछी परिवर्तन का धर्म लाभ ले तो हमें मृत्यु से पूर्व सद्गति भी मिल सकती है। क्योंकि जिस घर में साधु सन्तों के मौर पीछि रहती है वहां प्रत्येक कार्य शुभ होता है और व्यक्ति यदि वहां मृत्यु को प्राप्त करता है तो उसका समाधि संथारा हो सकता है।