भोपाल। यमराज का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं, मृत्यु का भय सताने लगता है लेकिन क्या आपको मालूम है यमराज की भी पूजा की जाती है, जी हाँ यमराज की भी पूजा होती हैं उनका तेल से अभिषेक होता है, बहुत से भक्त लोग उनका आशीर्वाद लेते हैं और ये सब होता है उत्तर भारत के इकलौते यमराज मंदिर ग्वालियर में, छोटी दिवाली यानि नरक चौदस वाले दिन यमराज की पूजा का विशेष महत्व है इस दिन मंदिर में दूर दूर से आने वाले श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। ग्वालियर के फूलबाग परिसर में स्थित है
यमराज का मंदिर, इस मंदिर में यमराज भगवान शिव, ऋषि मारकंडेश्वर, गौरी गणेश के साथ विराजे हैं, हालाँकि मंदिर की पहचान मारकंडेश्वर महादेव मंदिर के नाम से है लेकिन लोग यहाँ विराजे यमराज के दर्शनों की विशेष इच्छा से आते हैं, कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सिंधिया राजवंश द्वारा करीब 300 साल पहले की गई थी। भगवान शिव के वरदान का प्रतिफल है यमराज की पूजा रूप चौदस यानि नरक चौदस या नरक चतुर्दशी के दिन अर्थात छोटी दिवाली पर यमराज की पूजा का विशेष महत्व है, इसके पीछे भी कुछ मान्यताएं हैं, कहा जाता है कि यमराज की पूजा भगवान शिव के वरदान का प्रतिफल है, यमराज ने एक बार कालों के काल महाकाल को प्रसन्ना करने के लिय उनकी तपस्या की,
जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज वरदान दिया कि आज से तुम्हारी गिनती मेरे गण के रूप में भी होगी, नरक चौदस के दिन जो भी भक्त मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा अभिषेक करेगा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी तभी से नरक चौदस वाले दिन यमराज की पूजा का विधान है। धूप दीप से होती है पूजा, तेल से होता है अभिषेक नरक चौदस वाले दिन सुबह मंदिर का अधिष्ठाता परिवार पिछली सात पीढ़ियों से यमराज की विशेष पूजा करता आया है, धूप, दीप, इत्र, चन्दन, रोली, फुल आदि से यमराज की पूजा की जाती है और सरसों के तेल से यमराज का अभिषेक किया जाता है, चौमुखे दीपक से यमराज की आरती की जाती है,
उत्तर भारत का इअक्लौता यमराज मंदिर होने के कारण यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।