ध्यान और एकाग्रता के बिना पापों का नाश नहीं हो सकता - वैराग्य सागर जी म सा. आत्मा शाश्वत सत्य है - सुप्रभ सागर जी महाराज

Neemuch headlines October 23, 2024, 6:06 pm Technology

नीमच। संसार परिवर्तनशील है मनुष्य अनंत काल से इसमें भटक रहा है आत्मा के गुणधर्म और मूल तत्व को हम भौतिक पदार्थ की कल्पना कर भूल रहे हैं नए साधन बढ़ रहे हैं। मोबाइल में रोज नई-नई वस्तुएं प्रयोग सामने आ रहे हैं। नई चीज की प्राप्ति की इच्छा बढ़ती जा रही है पर पदार्थ में मानव का मन भ्रमित हो रहा है। मानव की आयु सीमित है शरीर की इंद्रियां भी सीमित है शरीर में स्थिरता नहीं है तो लोगों को शरीर में कमर दर्द सर दर्द बढ़ रहा है संसार दुखों से भयभीत है दुनिया के बाबा चमत्कार दिखाने की आड़ में धोखाधड़ी कर रहे हैं। भौतिक पदार्थो में यदि सच्चा सुख होता तो राजा महाराजा जंगलों में तपस्या करने नहीं जाते । ध्यान और एकाग्रता के बिना पापों का विनाश नहीं हो सकता है। यह बात मुनि वैराग्य सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में शताब्दी वर्ष शांति सिंधु सूर्य महोत्सव में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि ध्यान और एकाग्रता के साथ सच्चे मन से सामाजिक करें तो हमें सभी पात्र सभी पदों और तत्व प्राप्त हो सकते हैं।

हम ऋद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं सामयिक के समान कोई धर्म नहीं होता है मन की एकाग्रता से पापों को नष्ट किया जा सकता है और मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। जिस प्रकार टीवी सीरियल देखने में लोग एकाग्र रहते हैं इसी प्रकार हमें सामायिक की क्रिया करने में भी एकाग्रता रखनी चाहिए। मन की चंचलता कम करने के लिए सामायिक सशक्त माध्यम है । व्रत से चंचलता नहीं बढ़ती है। सामायिक से पाप कर्मों की निर्जरा होती है। मन वचन काया से मंत्रों का जाप करें तो वह स्थान पवित्र तीर्थ स्थान बन सकता है। मन को छोड़ना मुश्किल है। संसार के पदार्थ नहीं छुटते हैं तो ध्यान नहीं लग सकता है। यदि हमें सामायिक पूर्ण करना है तो हमें हलका आहार ग्रहण करना चाहिए। भारी आहार से बचना चाहिए। साधु को पहले सामयिक करना चाहिए फिर भोजन ग्रहण करना चाहिए तभी मन में स्थिरता आ सकती है।

जिससे हमारा कोई संबंध नहीं है उनकी व्यर्थ वार्ता कर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहिए। दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि प्रतिदिन सुबह आचार्य वंदना, मंगलाचरण, शास्त्र दान, चित्र अनावरण, प्रश्न उत्तर मंच संवाद, सहित विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये जा रहे हैं। मुनि सुप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि आत्मा शाश्वत सत्य है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। चिंतन कर ध्यान लगाना ही सामायिक होती है। धार्मिक स्वाध्याय में आत्मा का स्वरूप का ज्ञान होता है। ध्यान नहीं लगता है सामयिक में एकाग्रता से ध्यान होगा ध्यान से ही आत्मा का महान होती है। एकाग्रता का अभ्यास होगा तभी आत्मा की अनुभूति हमें हो सकती है। गलती से पाप हो जाए र्ता उसका प्रायश्चित साधु को भी करना चाहिए। तीनों संध्या काल में सामायिक करना चाहिए।

जहां मच्छर शोर शराबा आवागमन अत्यधिक हो वहां पर सामायिक नहीं करना चाहिए । एकांत में सामायिक करना चाहिए समय करने से पूर्व आसान सिद्ध करना चाहिए आसान सिद्ध ही ध्यान सिद्धि में प्रवेश का माध्यम होता है मन भाव वचन से शरीर को स्थिर करना है। तभी ध्यान लगा सकता है। एकाग्रता ध्यान भोजन आहार के लिए प्रसुध पानी का ही उपयोग करना चाहिए नहीं तो हमारा पाप कर्म बढ़ जाता है। इससे पाप कर्मों को नष्ट कर सकते हैं।

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