नीमच। मन की अज्ञानता को दूर कर परमात्मा का की भक्ति भाव सम्मान करना सीखेंगे। जीव दया का पालन करेंगे तभी आत्मा पवित्र होती है। बच्चों को यदि धार्मिक संस्कारों से जोड़ना है तो बचपन से ही धर्म संस्कारों से जोड़ना चाहिए और धार्मिक पाठशाला में ज्ञान के लिए नियमित अध्ययन करवाना चाहिए। धर्म संस्कार के बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है।। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज ने कहीं। वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ ट्रस्ट पुस्तक बाजार के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में धर्म आगम पर्व पर आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि चिंता ज्ञान से पाप बढ़ता है। इसे सदैव बचना चाहिए। झूठ बोलना भी पाप होता है। झूठ बोलने से भी बचना चाहिए। सदैव सच बोलना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। यदि हम संसार से दूर रहेंगे तो पाप कर्मों से दूर रहेंगे। और हम दुर्गति से बच सकते हैं। जीव दया का पालन करेंगे तो सद्गति की ओर बढ़ सकते हैं। पाप के प्रति चिंतन होना चाहिए। प्रायश्चित भी करना चाहिए कपड़े धोने से पूर्व जीव दया के लिए क्षमा मांगना चाहिए तो उससे पाप कर्म हल्का हो जाता है। हमसे अच्छा हो या नहीं हो इसकी चिंता करनी चाहिए तभी हमारी आत्मा पवित्र हो सकती है। आसक्ति नहीं होना चाहिए। आहार को सदैव त्याग की भावना से ही जोड़ना चाहिए। अतिथियों का सम्मान देवता के सम्मान के समान करना चाहिए तो हमारे घर में सुख शांति रह सकती है। अतिथि अपने साथ सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है और आशीर्वाद के रूप में सकारात्मक ऊर्जा देकर जाता है इसलिए अतिथि की सेवा ही ईश्वर की सेवा के समान करना चाहिए।
प्यार में कोई शुभ कार्य करें तो पहले परमात्मा को याद करना चाहिए। निर्दोष श्रावक के नियमों का पालन करना प्रत्येक श्रावक श्राविका का कर्तव्य है। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। प्रतिदिन सुबह 9 बजे प्रवचन करने के व साध्वी वृंद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया।