नीमच। धर्म के पुण्य को सुरक्षित किए बिना मोक्ष नहीं मिलता है। चक्रवर्ती सम्राट भी अपने धर्म के पुण्य को सुरक्षित रखने के लिए निरन्तर पुण्य कर्म करता है तभी वह पुण्य फल के साथ जीवन जी सकता है। आधुनिक युग में मनुष्य सुख समृद्धि वैभव मिलने को ही पुण्य मान लेता है और धर्म के पुण्य कर्म को धीरे-धीरे छोड़ देता है यही कारण है कि आधुनिक युग में मनुष्य धर्म को छोड़ता जा रहा है और उसका पुण्य कर्म कम होता जा रहा है। यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही।
वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मंदिर सभागार में परम पूज्य चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण शताब्दी वर्ष एवं उपलक्ष्य में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्राणी को भी निरंतर पुण्य प्राप्त करते रहना चाहिए। अरिहंत पद की प्राप्ति तो पुण्य से ही मिलेगी पुण्य के बंद में राग नहीं हो तो मुक्ति प्राप्त हो जाती है। को विषय कषाय से बचना चाहिए पुण्य अच्छा है तो सभी सामग्री सोते ही मिल जाती है। संसार में रहते हुए व्यक्ति को निरंतर पुण्य कर्म से जुड़े रहना चाहिए यदि हमारे मन में भव शुभ होंगे तो पुण्य बढ़ता जाएगा भाव अवश्य होंगे तो पाप कर्म भर सकता है उन्हें फल कम होने पर करोड़पति को करोड़पति बनने में देर नहीं लगती है और पुण्य कर्म बढ़ने से करोड़पति को करोड़पति बनने में भी देर नहीं लगती है। प्राचीन काल में किस फसल होने के बाद फसल का एक भाग बीच के रूप में सुरक्षित रखता था। इस बीज से वापस अगली फसल प्राप्त करता है इसी प्रकार हमें धर्म का बीज का पुण्य फल सुरक्षित रखना है तभी हमें आगे धर्म का पुण्य मिलेगा।
दिगंबर जैन समाज व चातुर्मास समिति अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि आगम पर्व के उपलक्ष्य में एकाग्रता, संस्कार, विधि तप उपवास की विधि और सावधानियां सहित विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर मार्गदर्शन प्रदान किया। मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने कहा कि संसार में रहते हुए मनुष्य को अपने आहार उपभोग पर संयम रखना चाहिए। धर्म के लिए नियमित रूप से समय निकालना चाहिए। महानगरों में लोगों के पास धर्म के लिए समय नहीं है चिंता का विषय है। अमीर लोगों के पास किटी पार्टी डांडिया नृत्य के लिए व्यर्थ समय है लेकिन धर्म पुण्य कर्म के लिए उनके पास समय नहीं है चिंतन का विषय है। आदिवासी लोग कमाते हैं और खाते हैं उनके पास भी धर्म कर्म का समय नहीं रहता है। लेकिन वे अपने जीवन के व्यस्त समय में से धर्म के लिए समय अवश्य निकलते हैं।