वाराणसी की धरोहर, मसान होली, जो कि भारतीय परंपराओं का महत्वपूर्ण अंग है, इस बार भी बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाई जाने वाली है। दरअसल यह उत्सव होली के पूर्व दिनों में रंगभरी एकादशी के साथ शुरू होता है।
इस मौके पर महाकालेश्वर और भगवती पार्वती ने गुलाल से होली खेली थी, जिसके एक दिन बाद काशी में मसान की होली होती है। वहीं गोकुल के रमणरेती में भी होली के 10 दिन पूर्व से ही होली का उत्सव मनाया जाता है। मसान की होली का अनूठा अनुभव:- काशी की धरोहर, मसान होली, एक विशेष तरीके से मनाई जाती है। यहां पर अघोरी और साधु-संत चिता की राख के साथ होली खेलते हैं, जिसे मसान की होली कहा जाता है। यह परंपरा काशी के धरोहर के रूप में जानी जाती है और इसे अगली पीढ़ियों तक बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। भूत-प्रेतों के संग होली:- दरअसल इस परंपरा के पीछे की कहानी बड़ी ही अद्भुत है। दरअसल ऐसा माना जाता है की भगवान शिव ने रंगभरी एकादशी पर पार्वती माता के साथ होली खेली थी लेकिन इस वजह से भगवान शिव भूत-प्रेत के साथ होली नहीं खेल पाएं थे। जिसके बाद अगले दिन भगवान शिव ने मर्णिकर्णिका घाट पर भूत-प्रेतों के साथ होली खेली थी। दरअसल मसान होली का अनूठा महत्व है। यह धार्मिक दृष्टिकोण से भगवान शिव का भूत-प्रेतों के संग होली मनाने का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। यह होली काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर खेली जाती है जिसमें अघोरी और साधु-संत शामिल होते हैं। कैसे मनाते हैं मसान की होली? जानकारी दे दें की काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर खेली जाने वाली इस होली में अघोरी और साधु-संत शामिल होते हैं और यह मसान की राख को होली के गुलाल की तरह अपने शरीर पर लगाते हैं। इसके साथ ही काशी की मसान होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस दिन पूरा मणिकर्णिका घाट हर-हर महादेव के नारों से गूंज उठता है।