रामायण हमारे भीतर ही हैं बस चरित्र को जीवन में उतार लेंगे तो शांति संभव है - प पू श्री पराग श्री जी मसा

विनोद पोरवाल February 24, 2024, 5:04 pm Technology

 कुकडेश्वर। रामायण हमारे भीतर में ही है और जिसने रामायण को चरित्र में उतार लिया तो शांति हमारे भीतर और आस पास निवास करेंगी उक्त बात हुकमेश संघ के नवम् नक्षत्र प्रशान्त मना आचार्य भगवंत श्री रामेश की शिष्या शासन दिपीका प पू श्री पराग श्री जी मसा ने समता भवन ब्यावर में धर्म सभा में नियमित प्रवचनों के दौरान फरमाया कि रामायण का एक एक किरदार हैं जो हमे प्रेरणा देता हैं। रामायण में राम से लेकर रावण हमारें भीतर मे उपस्थित है। आपने फ़रमाया कि राजा दशरथ, भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शतुन्ग्य, रावण, कुभ करण, विभीषण, माता सीता, कौशल्या, कैकयी, मंथरा, मंदागरी, लंका आदि का पात्र हमारे भीतर रह रहा है। हमे इन सबसे प्रेरणा लेकर मन में शांति बनाए रख सकेगें व अपनी चेतना को अंतमुर्खी बनाये। आपने फ़रमाया कि रामायण के सभी नामों के बारेमे कहा कि राम जो जन जन का नाम है, लक्ष्मण विवेक रखने वाला, सीता शांत व प्रतिव्रता होना, दशरथ जो पांचो इन्द्रियो से मुक्ति पाता, कैकयी विरक्ति, मंथरा जो मन को स्थिर रखती मंथरा के कारण राम को जन जन का राम बनाने मे सहायक बनी, रावण जो अंहकार अभिमानी रुपी है, लक्ष्मण जो मर्यादा सयंम है, लंका माया का स्थान है। कुंभकरण मन का भ्रम है, विभिषण धार्मिक विश्वास है। मदोगरी आस्था के समान है। स्वर्ण मृग माया चंचलता है आपने कहा कि हमें इन सभी पात्रों से प्रेरणा लेनी है। व अपने भीतर की रामायण देखे तो शांति मिलेगी। आज हम देखते हैं कई भाई को खाना नसीब नही होता और हम शादियों में सैकड़ों तरह की मिठाईया बनवा देते। हम एक पिता की संतान होने पर राम जैसे कभी नही बन पाये। वहीं आज स्वधर्मी भाई के बारे मे विचार करें एक भाई घर बैठा एक मौज उडाता, हमे भरत जैसा बनना है जो भाई की चरण पादुका रख कर राज चलाता रहा। इसी तरह हमें आज हमारे राम गुरु नये नये आयाम देकर हम सब को तिराने का काम करते रहते हैं इस अवसर पर प पू श्री पावन श्रीजी म सा ने कहा बाहरी वस्तु का त्याग करना सरल होता हैं भीतर की प्रवृत्ति को छोडना मुश्किल होता है। आज हम भोग, विलास, वैभव, शसंपत्ति की और बढते जा रहे हैं चिंतन करें अनावश्यकता भीतर मे प्रवेश नही हो। वैभव विलास को छोडकर सयंम की और कदम बढाना है व प्रभु सेवा में मन लगाकर आत्म कल्याण करें।

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