नीमच। अशुद्ध आहार आत्मा की दुर्गति का प्रमुख कारण होता है इसलिए सदैव हमें शुद्ध और निर्दोष आहार ही ग्रहण करना चाहिए । ऐसा कोई भी आहार ग्रहण नहीं करें जिससे जीव हत्या हो ।
जीव दया का पालन करते हुए हीआहार ग्रहण करना चाहिए। यदि शुद्ध आहार नहीं मिले तो तपस्या उपवास कर लेना चाहिए तो आत्मा का कल्याण भी होगा और पाप कर्म भी नहीं बढ़ेगा। यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मन को शांत करना है तो भौतिक पदार्थ का त्याग करना होगा। हजारों दिन का अभ्यास करते हैं तब जाकर केवल ज्ञान की बुद्धि आती है और वैराग्य उत्पन्न होता है प्रतिदिन अभ्यास करेंगे तो मन शांत होगा। यदि हम अनाशक्त भाव में रहेंगे तो आत्मा की साधना करना मुश्किल होगा ।
आत्मा के लिए साधु संयम जीवन राज मार्ग है। हम संयम जीवन के नियम पर दृढ़ संकल्प रह कर जीवन पर्यंत नियम का पालन करें तो अंतिम समय वह याद आएगा और प्रभु हमें सद्गति प्रदान कर सकते हैं। हम आहार का नियंत्रण करें तो पाप कर्मों का श्रेय होगा। संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। धार्मिक चढ़ावे की बोली लगाई गई जिसमें समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद , जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।