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सावन मास का दूसरा और अधिकमास का पहला रवि प्रदोष व्रत

Neemuch headlines July 30, 2023, 7:05 am Technology

30 जुलाई दिन रविवार को यानी सावन के दूसरे प्रदोष तिथि का व्रत किया जाएगा ।और मलमास या अधिकमास का पहला सावन प्रदोष व्रत होगा। पंचांग के अनुसार, हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तिथि का व्रत किया जाता है। साल भर में 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं लेकिन सावन मास में आने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। जो प्रदोष तिथि रविवार के दिन पड़ती है, उस तिथि को रवि प्रदोष या भानु प्रदोष के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने और प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और शिव परिवार का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की तिथि, महत्व, शुभ योग और काम की जानकारी...

रवि प्रदोष तिथि का महत्व:-

रवि प्रदोष के दिन शिवलिंग का अभिषेक रुद्राभिषेक और श्रृंगार का विशेष महत्व है। इस दिन सच्चे मन से उपवास और पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल व आरोग्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव के आशीर्वाद से आयु भी बढ़ती है। स्कंद पुराण के अनुसार, प्रदोष तिथि के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी देवता वंदना करते हैं। इस व्रत के प्रभाव से कुंडली में नवग्रह की स्थिति मजबूत होती है और हर संकट से निजात मिलती है। रवि प्रदोष का नियम पूर्वक व्रत रखने और पूजा अर्चना करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और धन व समृद्धि बनी रहती है।

सूर्य चंद्र का प्रदोष व्रत से संबंध:-

पुराणों के अनुसार, सावन अधिकमास की प्रदोष तिथि पर शुभ योग भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना करने से लंबी आयु की प्राप्ति होती है। रवि प्रदोष व्रत का सूर्य और चंद्र देव से भी संबंध है। भगवान शिव चंद्रमा को धारण किए हुए हैं इसलिए प्रदोष तिथि का व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और रवि प्रदोष का संबंध ग्रहों के राजा सूर्य से है। साथ ही इस दिन रवि योग भी बन रहा है। इसलिए रवि प्रदोष का उपवास करने और शिवजी की पूजा करने से सूर्य और चंद्रमा शुभ फल देते हैं और कुंडली में अपयश दूर होता है। साथ ही मान सम्मान में वृद्धि होती है और मानसिक शांति मिलती है। प्रदोष व्रत तिथि का शुभ मुहूर्त:- सावन अधिकमास प्रदोष व्रत 30 जुलाई 2023 दिन रविवार त्रयोदशी तिथि का आरंभ - 30 जुलाई, सुबह 10 बजकर 34 मिनट से त्रयोदशी तिथि का समापन - 31 जुलाई, सुबह 7 बजकर 26 मिनट तक शिव पूजा मुहूर्त - रात 7 बजकर 14 मिनट से 9 बजकर 19 मिनट तक। पूजा के लिए 2 घंटे 6 मिनट का समय मिलेगा।

प्रदोष व्रत तिथि के दिन बन रहे शुभ योग:-

सावन के दूसरे प्रदोष व्रत पर रवि योग, इंद्र योग और सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व काफी बढ़ गया है। इन शुभ योग में भगवान शिव की पूजा करने का शुभ फल अधिक मिलता है और जीवन में सुख संपन्नता बनी रहती है। रवि प्रदोष व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 बजकर 10 मिनट से शुरू होगा और 9 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। रवि योग सुबह 9 बजकर 2 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। वहीं इंद्र योग 29 जुलाई को सुबह 9 बजकर 34 मिनट से 30 जुलाई को सुबह 6 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। रवि प्रदोष तिथि के दिन बन रहे ये शुभ योग बेहद लाभकारी होते हैं और जीवन में सुख-संपन्नता के मार्ग तय करते हैं।

प्रदोष व्रत पूजा विधि:-

प्रदोष तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान और ध्यान से निवृत होकर साफ व स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर में बने पूजा घर में दीपक जलाकर और हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पास के शिवालय में जाकर शिवलिंग की षोडशोपचार विधि से पूजा अर्चना करें और पूरे दिन निराहार व्रत रखें। इसके बाद मन ही मन ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते रहें। फिर शाम के समय प्रदोष काल में आठों दिशाओं में आठ दीपक रखें और आठ बार नमस्कार करें।

इसके बाद शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल मिलाकर पंचामृत से अभिषेक करें और भांग, धतूरा, बेलपत्र फूल और नैवेध शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके बाद धूप दीप जलाकर भगवान शिव की आरती उतारें और प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। इसके बाद आप भोजन कर सकते हैं।

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