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इस वर्ष 2023 में दर्शन नही देगें शंखोद्धार महादेव, वर्ष 2012 से 6 साल बाद, 2018 -19 में दर्शन दिए शंखोद्वार महादेव ने

मंगल गोस्वामी May 8, 2023, 8:21 am Technology

मनासा। महाभारत काल का मशहूर भगवान् शिव का शंखोद्वार महादेव मंदिर जो जलमग्न है। जिसे वर्ष 2012 में देखा गया था उसके बाद 2018-19 में दर्शन हुए, किंतु वर्तमान मे गांधीसागर बांध का जलस्तर 1295 के लगभग है एवं अभी मई माह का प्रथम सप्ताह चल रहा है एवं अभी जनरेशन भी लगातार चल रहा है।

लगभग 1285 जलस्तर पर मंदिर में दर्शन होते है। लगभग 10 फिट पानी यदि जनरेशन भी होता तो जलस्तर कम होना 2023 जुलाई तक संभव नही हैं।

महाभारत युगीन मन्दिर है, अकाल मृत्यु वालो का होता है तर्पण :-

गांधी सागर जलाशय व चंबल नदी की गोद मे स्थापित महाभारत कालीन प्राचीन मन्दिर शंखोद्वार महादेव का मंदिर पिछले 5 सालों से पानी मे डूबा था जो अब खाली हुआ है ज्ञात रहे कि जब बांध का पानी अपनी पूरी लेवल पर होता है तो मन्दिर पर करीब 5 फिट पानी रहता है।

जबकि जमीन से मन्दिर की ऊंचाई भी 20 फिट के करीब है पिछले 5 साल से गांधीसागर बांध का जलस्तर ज्यादा कम नही हो रहा था मगर इस साल पानी लगातार घट रहा है किन्तु इतना भी कम नही होगा कि जिसके चलते ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शन हो सके। बताया जाता है कि शंखोद्वार महादेव मंदिर में अकाल मृत्यु होने वाले मृत आत्माओं का तर्पण होता है ओर उनको मुक्ति मिलती है जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है देश के कोने कोने से लोग असमय काल की ग्रास बने अपने परिजनों के मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं और विधि विधान से उनका पिंड दान करते है बताया जाता है कि यहां महाभारत काल मे पांडवों ने अज्ञात वास बिताया था और उसी समय यहां पर भीम ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था तब शंखासुर ने पांडवों से वरदान मांगा था कि आपके साथ मुझे भी इतिहास में याद किया जाए तब पांडवों ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की ओर उसका स्थान का नाम शंखोद्वार रखा ओर उसको वरदान दिया था कि अकाल मौत मरने वाली आत्माओं को यहां के सिवा कहि मोक्ष नही मिलेगा जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है बताया जाता है यह शिवलिंग 6 माह जमीन के अंदर ओर 6 माह जमीन से एक फिट बाहर रहता है जो साक्षत चमत्कार है अविभाजित मन्दसौर जिले में बांध बनने से पहले यहाँ गंगामाता शंखोद्वार महादेव के नाम से विशाल मेला लगता था जिसकी ख्याति दूर दूर तक थी मगर आजादी के बाद 1950 में गांधीसागर बांध बनने के बाद हजारो गांव उजड़ गए और उसी के साथ यह स्थान भी इतिहास के पन्नो में गुम होगया तब से अब तक यहां जब जब भी यह मंदिर पानी से बाहर आता है तो कई भक्त गण दर्शन करने आते हैं।

यहां रामपुरा से 25 किमी दूर दुधलई से देवरान, चचोर लोटवास होकर अपने वाहन से पहुँचा जा सकता है।

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