नीमच। श्रीकृष्ण का जन्म दुसरे जीवों के कल्याण और विश्व मैत्री की प्रेरणा के लिए हुआ था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिये गीता उपदेश में पुण्य कर्म फल के महत्व को बताया जिसे हम आत्मसात करें। हम सदैव पुण्यकर्म करें, फल की इच्छा नहीं करें, पुण्यकर्म प्रधान होता है। यह बात साध्वी गुणरंजना श्रीजी मसा ने कही। वे सोमवार सुबह बघाना शक्तिनगर स्थित श्री शंखेष्वर पार्श्व पदमावती धाम सभागृह में कृष्ण जन्माष्टमी के पावन उपलक्ष्य में आयोजित चातुर्मास धर्मसभा में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने जो किया वह नहीं करना चाहिए। कृष्ण ने जो उपदेष में कहा वह करेंगे तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा।
कृष्ण ने जो किया वह नहीं करना है। राम ने जो किया वह करना चाहिए तभी जीवन आदर्श मर्यादा के साथ सफल होगा। जो धर्म नीति पर चलता है! वह अनहोनी को भी होनी में बदल देता है। धर्म अपने आपमें आश्चर्यजनक है। श्रीकृष्ण ने गुरू सांदीपनी के पुत्र की मृत्यु होने के बाद भी यमराज से वापस उनके पुत्र को लाकर गुरूदीक्षा दी थी और गुरू मां का दुःख दूर किया था। कृष्ण राम महावीर का जन्म संसार के प्रत्येक जीव कल्याण और विश्व मैत्री के लिए हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म नारी के आंसू पोंछने के लिए हुआ था। मानव की दानव प्रवृत्ति समाप्त होना चाहिए। शत्रु के प्रति कैसी नीति होनी चाहिए यह भगवान् श्री कृष्ण से सीखना चाहिए।