कैबिनेट विस्तार से किसको क्या मिला?
पीएम नरेंद्र मोदी की सोच अब क्या है?
इस विस्तार के मायने क्या हैं?
काम करने का किसको मिला ईनाम, लापरवाही की किसको मिली सजा?
अब इस विस्तार से क्या आगे की दशा-दिशा पर भी फर्क पड़ेगा?
सियासी समीकरण किस तरह साधे गए?
जातिगत समीकरणों का कितना ध्यान रखा गया?
शासन-प्रशासन को दुरुस्त करने का क्या रोडमैप है?
सबसे बड़ा सवाल ये कि सात साल के कार्यकाल में मोदी ने अब तक के सबसे बड़े फेरबदल और विस्तार से संदेश क्या दिया?
और सबसे बड़ा सवाल इस बदलाव से अब देश की जनता यानी हमको और आपको क्या मिलने जा रहा है?
राज की बात कैबिनेट स्पेशल में बात करते हैं कि आखिर इस पूरी कवायद का हमसे-आपसे क्या लेना-देना है. कौन हटा, कौन बढ़ा और कौन घटा विश्लेषण में पीछे छूट जाती है जनता. सरकार के नुमाइंदों की कार्यप्रणाली और उसके फैसले जनता पर सीधा असर डालते हैं. तो राज की बात में हम आपको बताते हैं कि कैसे मोदी सरकार का यह फैसला हमारी-आपकी जेब से भी जुड़ा है. हालांकि, इसका एक पहलू यह भी है कि अर्थव्यवस्था के लिहाज से मोदी ने अपनी टीम के गठन में नौकरशाही पर भरोसा किया है. बल्कि इसे यूं कहे कि संगठन के लोगों या राजनीतिक शख्सीयतों के बजाय सरकार ये मान चुकी है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को नौकरशाह ही बढ़ा सकते हैं. इसी लिहाज से कुछ बड़े और अहम समझे जाने वाले मंत्रियों का कार्यभार कम भी किया गया है. वैसे तो मोदी की कैबिनेट में 13 वकील, छह डाक्टर, पांच इंजीनियर और सात नौकरशाहों के रखने का आंकड़ा सामने आ रहा है. इसके अलावा दलित, ओबीसी, महिला और पिछड़ों के हिसाब से जातीय समीकरण की बात भी खूब जताई और बताई जा रही है. आमतौर पर सियासत में चुनाव के दृष्टिगत कैबिनेट में कौन लाया गया और कौन बाहर किया गया, इस पर खूब बात होती है. मगर सरकार सिर्फ चुनाव के लिए नहीं होती. बल्कि यूं भी कह सकते हैं कि चुनाव के लिए भी सरकार के कामकाज की समीक्षा भी जनता करती है तमाम समीकरणों को साधने के बाद भी. फिलहाल मोदी सरकार की सबसे बडी चिंता अर्थव्यवस्था और रोजगार है. राज की बात में हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि कैसे आर्थिक रफ्तार को तेज करने के लिए मोदी ने तमाम राजनीतिक समीकरणों को साधते हुए अपने पांच रत्नों को ये बड़ी जिम्मेदारी दी है. सबसे पहले उस चेहरे की बात जो इस मंत्रिमंडल विस्तार में धूमकेतु की तरह उभरा.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव रहे अश्विनी वैष्णव की. उड़ीसा काडर के इस आइएएस की ख्याति कटक के डीएम के रूप में हुई थी. इसके बाद वाजपेयी के निजी सचिव लंबे समय तक रहे. फिर संयुक्त सचिव पद तक काम किया. इससे पहले वाजपेयी के पीएमओ में ही डिप्टी सेक्रेट्री के रूप में पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को तैयार करने में विशेष योगदान दिया था. बाद में आईएएस से इस्तीफा देने के बाद आईआईटी से यह इंजीनियर और फिर बाद में अमेरिका से एमबीए कर आईटी कंपनियों में उच्च पद पर काम किया. फिर 2017 में अपना स्टार्टअप शुरू कर ओडिशा में आयरन आक्साइड पेलेट बनाने वाली एक कंपनी का अधिग्रहण कर अपनी क्षमता का लोहा मनवाया. फिर अश्विनी कुमार बीजेपी और बीजेडी के सहयोग से दो साल पहले राज्यसभा आए और अब उनके जिम्मे रेलवे और आईटी जैसे मंत्रालय हैं.
अब राज की बात यहीं छिपी है कि आकार और प्रभाव के लिहाज से सबसे बड़े मंत्रालय में अश्विनी वैष्णव पर ही मोदी ने क्यों भरोसा किया. तो इसके लिए हम आपको उस राज से वाकिफ कराने जा रहे हैं, जिसके तार जुड़े हुए हैं मोदी कैबिनेट में सबसे पहले रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु से. याद रहे कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया था, ताकि यहां पर सुधार किए जा सकें. प्रभु ने काम भी शुरू किया, लेकिन ट्रेन दुर्घटनाओं के चलते जनता के बीच छवि बचाने के लिए उन्हें बीच में ही हटाना पड़ा. वैसे प्रभु मोदी सरकार में वाणिज्य और उद्योग के साथ-साथ नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे थे. राज की बात ये है कि सुरेश प्रभु वहां से हटे तो लेकिन मोदी का भरोसा उन पर बना रहा. उनको एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जा था जो रेलवे को अपने राज्य और सियासत की चिंता करे बगैर कमाऊ और आधुनिक बना सके.
प्रभु जब वाजपेयी की सरकार में ऊर्जा मंत्री थे तब यह कमाल कर चुके थे. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने भी प्रभु की इस क्षमता को देखा था और उसके कायल थे. खैर प्रभु को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना शेरपा बना रखा है जो वहां देश का प्रतिनिधित्व करता है. फिलहाल प्रभु 16 अंतरराष्ट्रीय संगठनों और नौ सामरिक संवाद में शिरकत कर रहे हैं. निवेश और आर्थिक सुधार के लिहाज से वह अभी भी मोदी के पसंदीदा हैं. राज की बात ये कि वाजपेयी सरकार में प्रभु ऊर्जा के अलावा अन्य मंत्रालयों में जब थे, तबसे अश्विनी वैष्णव के संपर्क में थे. तो जो सुधार प्रभु ने शुरू किए थे और दिशा तय की थी, उसके बाद से रेलवे में उस गति से काम नहीं हो सका. उन्हें पूरा करने का जिम्मा मोदी ने अब अश्विनी वैष्णव को दिया है.
अश्विनी वैष्णव खुद भी आईटी क्षेत्र से जुड़े रहे हैं, लिहाजा वहां भी निवेश और रोजगार कि दिशा में काम करेंगे. प्रभु का मार्गदर्शन भी रहेगा. वैष्णव ने आते ही पहले दिन रेलवे में दो पालियों में छह से तीन और तीन से 12 बजे तक की दो शिफ्टों में काम कराने का ऐलान कर साफ कर दिया है कि वह सुधारों को लेकर पूरी तेजी से काम करेंगे. इसके अलावा दूसरे नौकरशाह हैं हरदीप सिंह पुरी. विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी पुरी को मोदी पिछले कार्यकाल में ही नगर विकास मंत्रालय में लाए थे. इस दफा उन्हें पेट्रोलियम भी दे दिया गया है. वैसे तो मोदी कैबिनेट में एकमात्र सिख चेहरा होने के नाते भी उनको सियासी कारणों से तवज्जो दी जा रही है. मगर जहां तक काम की बात है तो उसमें भी शहरों को बदलने और उसके लिए विदेशी निवेश लाने का जिम्मा पुरी पर है. पुरी अभी तक मोदी के इस मानक पर खरे उतरे हैं, लिहाजा उन्हें यह मौका दिया जा रहा है. अब पेट्रोलियम का भी प्रभार देकर उनका कद बढ़ा दिया गया है. कैसे इन दोनों मंत्रालयों के माध्यम से निवेश और रोजगार लाएंगे ये उनकी परीक्षा है. पुरी के साथ ही स्वतंत्र प्रभार ऊर्जा मंत्री रहे आरके सिंह को कैबिनेट का दर्जा देकर उनका कद बढ़ाया गया है. जद यू से भी आरसीपी सिंह को लाकर उन्हें स्टील मंत्रालय दिया गया है, जिसमें अभी अपार संभावनायें हैं सुधार की. दोनों ही बिहार काडर के नौकरशाह रहे हैं. इस कड़ी में एक और पांचवां नाम भी है जो इन सबसे पहले ही विदेश मंत्री बन चुके हैं एस जयशंकर. जयशंकर विदेश सचिव के बाद सुषमा स्वराज के रहते ही इस सरकार में विदेश सचिव बने थे और लगातार विदेश दौरों से कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.
हालांकि, जयशंकर का कार्यकाल सुषमा जैसा प्रभावी और शानदार अभी तक नहीं रहा है, लेकिन मोदी का भरोसा कायम है. राज की बात ये है कि मोदी की प्राथमिकता भले ही अर्थव्यवस्था या कामकाज हो, लेकिन पूर्व नौकरशाहों का बढ़ता कद पार्टी के अंदर कुछ लोगों को चुभ भी रहा है. मगर ये सब जानते हैं कि सरकार मोदी के नाम पर बनी है.
मोदी ये जानते हैं कि काम की बड़ी लकीर जो खीचेंगे, उस पर ही उनके नाम का सिक्का चलेगा. लिहाजा, पार्टी के अंदर नौकरशाहों को राजनीतिज्ञों पर तरजीह दिए जाने को लेकर सुगबुगाहट तो है, लेकिन मोदी का नेतृत्व, शाह की प्रबंधन और कुल मिलाकर नतीजे. ये अहम है और इस मंत्रिमंडल विस्तार के बाद प्रदर्शन का दबाव अब केंद्र सरकार पर ज्यादा होगा.