धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया,यदि सदाचार गया तो सब-कुछ गया सयम रत्न विजय महाराज

Neemuch Headlines October 30, 2020, 8:12 pm Technology

नीमच। विकास नगर के जैन श्वेताम्बर श्री महावीर स्वामी जिनालय की शीतल छाया में आयोजित चातुर्मास के दौरान आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजय जी,मुनि श्री भुवनरत्न विजय जी ने कल्याण मंदिर स्तोत्र का महत्व बताते हुए कहा कि

हे देवेन्द्रों द्वारा वंदनीय! हे जग उद्धारक!

समस्त पदार्थों के रहस्यों को जानने वाले जगतपति! दया के सागर!अब आप मुझे पवित्र कीजिये और संसार के कष्टों से दुःखी,संकट के सागर से भयभीत मुझ जैसे असहाय प्राणियों की रक्षा कीजिए।

जगत में एकमात्र परमात्मा व गुरु ही है जो हमें आये हुए संकटों से उबार सकते है।परमात्मा की परम पवित्र छत्रछाया में आ जाने के बाद संसार की माया हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती।श्री सिद्धचक्र नवपद ओली आराधना के अष्टम दिवस चारित्र पद की महत्ता बताते हुए मुनि श्री ने कहा कि सम्यग्दर्शन सहित जो ज्ञान होता है,वह सम्यग् ज्ञान है और सम्यग् ज्ञानपूर्वक जिस चारित्र का पालन किया जाए वह सम्यक् चारित्र है।जैन दर्शन जैसे विचार प्रधान है,वैसे ही आचार प्रधान भी है।ज्ञान का फल त्याग है।ज्ञान का उद्देश्य आचरण है।यदि धन गया तो कुछ नहीं गया,यदि स्वास्थ्य गया तो कुछ गया,पर यदि सदाचार गया तो सब-कुछ गया। व्यक्ति यदि स्वयं को सुधार ले,तो समाज सुधार स्वतः ही हो जाएगा।श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं,वैसा ही दूसरे लोग करते हैं।बच्चों पर भाषण की नहीं,बल्कि आचरण की जल्दी असर होती है।वास्तव में ज्ञान और विश्वास की अपेक्षा आचरण ही अधिक मूल्यवान है।इत्र का परिचय देने के लिए सौगंध नहीं खानी पड़ती।इत्र के भीतर रहने वाली सुगंध ही इत्र का परिचय देने में समर्थ है,वैसे ही सदाचारी आत्मप्रशंसा से दूर रहते है।उन्हें अपना परिचय स्वयं देने की जरूरत नहीं पड़ती।चरित्र से बड़ा कोई मित्र नहीं।चरित्र इत्र के समान पवित्र होता है।

चरण आचरण के प्रतीक है,जो चलने का काम करते हैं।हमें ज्ञान के अनुसार चलना चाहिए।दूसरों को चलते हुए देखकर हम चलने का तरीका जान सकते हैं,पर मंजिल तक पहुंच नहीं पाते।लक्ष्य पाने के लिए तो स्वयं को ही चलना पड़ेगा।जैसे चंदन का भार ढोने वाला गधा केवल भार का हकदार होता है,वैसे ही चरित्र रहित ज्ञानी भी मात्र ज्ञान का हकदार होता है।जैसे गधे को चंदन प्राप्त नहीं होता,वैसे ही कोरे ज्ञानी को सद्गति प्राप्त नहीं होती।भारत को शिक्षा से अधिक चरित्र की आवश्यकता है।शास्त्रों का अध्ययन करके भी लोग मूर्ख ही रह जाते हैं,किंतु सदाचरण करने वाला पुरुष विद्वान बन जाता है।जो मनुष्य बोलता तो है,पर आचरण में नहीं लाता,वह उस बगीचे के समान है,जिसमें घास ही घास है।दूसरों को उपदेश देना बहुत सरल है,परंतु उसके अनुसार आचरण करना बहुत कठिन है।जुगनूं तब तक चमकता है,जब तक वह उड़ता रहता है।इसी प्रकार जब तक हम ज्ञान के अनुसार आचरण करते रहते हैं,

हमें यश-कीर्ति मिलती रहती है।आचरणहीन होते ही यश समाप्त हो जाता है।

अच्छा सोचना बुद्धिमानी है,

अच्छी योजना बनाना उससे अच्छी बुद्धिमानी है और योजना के अनुरूप कार्य करना सबसे उत्तम बुद्धिमानी है।

चरित्र एक सफेद कागज के समान है,जिस पर यदि एक भी धब्बा लग जाए तो बड़ी मुश्किल से मिटता है।कर्मों की राशि को जो समाप्त करता है,वही चारित्र कहलाता है और यही चारित्र जीव को शिव,आत्मा को परमात्मा बनाता है।

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