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रावण के पुतले को नहीं,बल्कि मन-मंदिर में बसी बुराइयों को भस्म करें संयम रत्न विजय महाराज

Neemuch Headlines October 26, 2020, 2:58 pm Technology

नीमच! विकास नगर के जैन श्वेताम्बर श्री महावीर स्वामी जिनालय की शीतल छाया में आयोजित चातुर्मास के दौरान आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजय जी,मुनि श्री भुवनरत्न विजय जी ने कल्याण मंदिर स्तोत्र का भावार्थ समझाते हुए कहा कि हे दिव्यस्वरूप! मुझे ऐसा लगता है कि अन्य जन्मों में भी इच्छित पदार्थों का दान करने में समर्थ होने पर भी मैंने आपके चरणकमलों की पूजा नहीं की,इसीलिए परिणाम स्वरूप मुझे इस भव में अपने कर्मों का फल मिल रहा है,जिससे मैं चित्त को दुःखी करने वाला कष्टों का स्थान बन गया हूँ।नवपद के तृतीय आचार्य पद की आराधना के प्रसंग पर मुनि श्री ने कहा कि मर्यादा पूर्वक पाँच प्रकार के आचारों का स्वयं पालन करने वाले,अनेक आत्माओं को आचार विषयक उपदेश देकर आचार पालन करवाने वाले 36 गुणों से युक्त आचार्य भगवंत होते हैं।नवपद में देव-गुरु और धर्म तीनों तत्व है।अरिहंत और सिद्ध देव तत्व है,आचार्य,उपाध्याय व साधु गुरु तत्व है तथा 'दर्शन,ज्ञान,चारित्र व तप पद' धर्म है।देव की आराधना देव बनने के लिए,गुरु की आराधना संयम ग्रहण करने के लिए और धर्म की आराधना आत्मा में रहे हुए आत्मा के स्वाभाविक गुण प्रकट करने के लिए करते हैं।आचार्य गणधरों के समान गुण व समुदाय को धारण करने वाले तीर्थंकर के समान होते हैं।दशहरा के प्रसंग पर मुनि श्री ने कहा कि अधिकतम लोगों के शरीर में तो रावण बैठा है।कौन अभिमानी नहीं है?किसमें अहंकार नहीं है?कौन तृष्णा,लालच,ईर्ष्या और द्वेष की आग में नहीं जल रहा है?प्रगाढ़ विद्वान और अकाट्य पंडित होने के बावजूद जो दानव कुल का माना जा रहा है,वह केवल अहंकार की गलती के कारण जलाया जा रहा है।लेकिन जो उसे जला रहे हैं,उसे मिटाने की खुशी मना रहे हैं,वे खुद कितने बड़े अहंकारी है,यह समझ नहीं पा रहे हैं।रावण ने तो बुराई की मर्यादा रखी।सीता का हरण करके भी उसके सतीत्व की लाज रखी,लेकिन आज के इंसान ने तो अपने पौरुष को मिटा दिया।जो रावण वर्षों पहले राम के हाथों मरा था,उसे हमने अपने जेहन में बसा लिया।अपनी लज्जा मिटाने के लिए मूर्ख लोग हर साल एक पुतला जलाते हैं और बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हैं।सही मायने में हम राम को लजाते हैं और रावण के अहंकार को अपनाते हैं।अपने भीतर पल रहे रावण को जलाना होगा,अपने अहंकार को मिटाना होगा।बड़ा बुरा लगता है,जब कोई रावण का दहन करता है और कहता है कि हमने बुराई पर विजय प्राप्त कर ली।यह भी तो अहंकार है कि किसी को मिटाना,उसके मिटने का जश्न मनाना और खुद को सभ्य,विनय व विवेकशील बताना।हर बड़ा अपने से छोटे पर रौब जमा रहा है।प्रायः अधिकारी रिश्वत खा रहा है और नेता जनता को दबा रहा है।अच्छाइयां दम तोड़ चुकी है।सभ्यता एक जंग लड़ रही है।लोभ और लालच के दीये जला दिए गए हैं।हर साल एक ऐसे शरीफ का दहन करते हैं,जिसने अपनी बहन का बदला लेने की गलती की,जिसने अपने स्वाभिमान के लिए सारे वंश की कुर्बानी दे डाली,अपनी सोने की लंका जलवा डाली।जिस रावण को राम ने भी महान पंडित माना,जिससे लक्ष्मण ने भी राजनीति के गुर सीखे,जिस रावण के कारण राम अमर हुए,उस रावण को जलाकर मूर्ख जश्न मनाते हैं।तब तो केवल एक रावण था और उससे मुकाबला करने के लिए राम भी थे।आज तो गली-गली में रावण खड़े हैं और हर गली के रावण अपनी ऊँचाई बढ़ाने पर अड़े हैं और राम जैसे चरित्रवान लोग तन्हाई में फटेहाल और भूख से कराहते पड़े हैं।रावण तो अपने अमरत्व के वरदान पर इठलाता था और सोने की लंका पर रौब जमाता था।आज तो लोग दान में चंद दिनों की जिंदगी लाते हैं,चंद कौड़ियां कमाते हैं और झूठी शान बताते हुए किसी भी दिन अखबार के 'निजी' कॉलम की खबर बन जाते हैं।रावण के पुतले को नहीं,बल्कि मन-मंदिर में बसी बुराइयों को भस्म करें।झुककर पाने की कोशिश करें।झुकाने की जिद छोड़ें,ताकि अच्छाई इठलाए और बुराई शर्म से खुद जल जाए।मुनि श्री के दर्शनार्थ चैन्नई से कांतिलाल हिराणी व बैंगलोर से अ.भा.श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रकाश हिराणी का आगमन हुआ। मौके परजैन भवन के अध्यक्ष अनिल नागोरी भी उपस्थित हुए।

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