नीमच। विकास नगर के जैन श्वेताम्बर श्री महावीर स्वामी जिनालय की शीतल छाया में आयोजित चातुर्मास के दौरान आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के. सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजय जी,मुनि श्री भुवनरत्न विजय जी ने कल्याण मंदिर स्तोत्र का भावार्थ समझाते हुए कहा कि जिनके बाल बिखरे हुए हैं,
गले में मनुष्य की खोपड़ी का बनाया हुआ हार झूल रहा है,
मुख में से अग्नि निकल रही है,
ऐसे राक्षसों के समूह को कमठासुर ने आपके पास आपको कष्ट देने के लिए भेजा,
लेकिन स्वयं राक्षस ही दुःखी होकर भाग गये।
हे परमात्मा!आपकी साधना मेरु पर्वत के समान अचल,अकंप व अटल है,
परिणाम स्वरूप कोई भी आपको विचलित नहीं कर सका।
बुढ़ापे का संबंध हमारे तन की अपेक्षा मन के साथ अधिक होता है।
मजबूत मन का व्यक्ति उम्र को जीत लेता है।
मन का युवा होना जरूरी है।मन डूबा तो नाव डूबी।
प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार जिसका जन्म हुआ है,उन्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना ही पड़ता है,
जो फूल खिलता है,उसे मुरझाना भी पड़ता है।
धरती पर आज तक कोई ऐसा दिन नहीं आया जब सूरज उगा तो हो,पर अस्त न हुआ हो।
संयोग के साथ वियोग भी है।
अगर व्यक्ति प्रकृति की इस व्यवस्था को प्रेम से स्वीकार कर ले तो,भागदौड़ स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
जीवन की वास्तविक साधना यही है कि व्यक्ति अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में सहज रहे।
यहाँ मित्र ही शत्रु और शत्रु ही मित्र बन जाते हैं।
जीवन को सहजता से जीना ही जीवन की सार्थकता और सफलता का मंत्र है।
गई हुईजवानी और आया हुआ बुढापा लौटाया नहीं जा सकता।
बालों को रंगकर बुढ़ापे को छिपाया तो जा सकता है,पर हटाया नहीं जा सकता।
हर किसी को जन्म,जवानी,रोग और बुढ़ापा इन चारों गलियारों से गुजरना पड़ता है।
यौवन हक है,तो जरा(बुढ़ापा) हकीकत।
हम हकीकत को स्वीकार करें।अगर हँसकर स्वीकारेंगे तो मृत्यु दस वर्ष दूर रहेगी और रोते-बिलखते काटेंगे तो मृत्यु दस वर्ष पूर्व ही आ जाएगी।
हम बुढ़ापे को समस्या न समझें। हमने अपनी लापरवाही और असजगता से बुढ़ापे को समस्या बना लिया है।
व्यक्ति ज्यों-ज्यों बूढ़ा होता है,उसके अंदर अशांति,उद्वेग,तनाव और असुरक्षा की भावना हावी होती जाती है।
बचपन में अज्ञान और अबोधता रहती है।युवावस्था में अशांति और उन्माद चढ़ जाता है तो बुढ़ापे में परिग्रह और असुरक्षा सबसे अधिक रहती है।
बुढ़ापा अशांति और असुरक्षा का धाम नहीं है,बल्कि शांति का धाम है।हमने अपना जीवन कैसा जीया,बुढ़ापा उसकी परीक्षा है।
यदि हम बुढ़ापे को समस्या समझते हैं तो हर उम्र एक समस्या है।
बुढ़ापा तो शांति,मुक्ति, समाधि और कैवल्य का द्वार है।
बुढ़ापे से वही व्यक्ति घबराएगा जिसने बचपन और यौवन दोनों को कचरापेटी में डाल दिया है।
जिसने जीवन की धन्यता के लिए कुछ न किया,उसका बुढ़ापा सूना है,पर जो प्रभु दर्शन,गुरु सान्निध्य,सत्संग-प्रेम और दूसरों की भलाई के लिए समर्पित रहा,उसका तो बुढ़ापा भी स्वर्ण समान है।
बुढ़ापे में बाल सफेद हो जाते हैं।सफेद बाल निवृत्ति के प्रतीक हैं।
बाल सफेद हो गए,यानी भोग और भोजन पूरा हो गया, अब नई यात्रा प्रारंभ करें।
अब परमात्मा के रास्ते पर चले।हमारा बुढ़ापा स्वस्थ,सार्थक,सुरक्षित और औरों के लिए आदर्श भी हो,यह आवश्यक है।
संतुलित आहार,उचित व्यायाम और प्रातःकालीन भ्रमण करते हुए आप हर आयु में स्वस्थ एवं युवा बने रह सकते हैं।
मन कभी बूढ़ा नहीं होता।जो जीवन के अंतिम क्षण तक ऊर्जा,उत्साह और उमंग बनाए नहीं रखता,उन्हें बुढ़ापे की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
जिसके आगे धंधा,पीछे धंधा और धंधे में भी धंधा होता है,ऐसी धंधे की स्थिति में भी समय निकालकर जो धर्म आराधना-साधना करता है,वही वास्तव में परमात्मा का सच्चा बंदा होता है।
23अक्टूबर,शुक्रवार से नव दिवसीय श्री सिद्धचक्र नवपद ओली आराधना के शुभारंभ होने पर प्रतिदिन श्रीपाल रास पर आधारित प्रवचन आराधना भवन में होंगे।