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जो 2 वर्षों के योगी ने कर दिखाया वो 14 वर्षों के शिवराज नही कर पाये, शिक्षामंत्री के निजी विद्यालय के पक्ष में बयान पर पत्रकार कपिल सिंह चौहान की ख़ास टिप्पणी

Neemuch Headlines September 17, 2020, 3:15 pm Technology

नीमच। फीस माफी अभियान के विरुद्ध निजी विद्यालयों के संगठन 'सोपास' ने शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार से भेंट की. इस खबर को 'सोपास' सहित प्रदेश के तमाम निजी विद्यालय संचालको ने इस तरह और इस शिर्षक से प्रचारित किया की "शिक्षा मंत्री परमार ने निजी विद्यालयों के पक्ष में दिया बड़ा बयान". 

'सोपास' याने निजी विध्यालयों के पक्ष में दिये गये इस तथाकथित बड़े बयान में उन्होने वही घिसी-पिटी बात दोहराई है की निजी विध्यालय कोरोना काल की ट्युशन फीस ले सकते हैं. शिर्षक का दुसरा पह्लू है की सोपास के पक्ष में बयान... तो यह भी कोई छूपा हुआ तथ्य नही है की शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार क्या पुरी शिवराज सिंह सरकार ही हमेशा निजी विद्यालयों के पक्ष में ही खड़ी रही है।

14 वर्ष और चौथी बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वो नही कर पाए जो की उत्तरप्रदेश में मुख्य्मंत्री योगी आदित्यनाथ ने कर दिखाया. उन्होने युपी में अपने कार्यकाल के मात्र दो वर्षों में ही फीस रेगुलेशन एक्ट को लागु करवा दिया था और अभिभावकों को भारी राहत दी।

अब बताईये योगी श्रेष्ठ के शिवराज ? शिवराज 14 वर्षों में कोई स्कूल निती नही बना पाए जबकी 6 वर्ष के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लिये नई शिक्षा निती ले आए हैं. बताओ मोदी श्रेष्ठ के शिवराज ? खैर, यह साबित करना मंतव्य नही है की कौन श्रेष्ठ, लेकिन शिक्षामंत्री के रूप में शिवराज के अदाकार बदलते गये मगर उनके डॉयलाग हमेशा वही रहे. शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार ने कुछ दिनो पहले कहा था की प्रदेश में फीस रेगुलेशन एक्ट लाया जाएगा. यह बात कोई नई नही है, शिवराज के चार बार और चौदह वर्षों के कार्यकाल के हर शिक्षा मंत्री ने ये बात कही है, मगर कानून न आया ना आने के आसार हैं। देश के विभिन्न राज्यों में लागु फीस रेगुलेशन एक्ट दरअसल स्कुलों की मनमानी पर लगाम लगाने के अधिकार सरकार और कलेक्टरों को देता है. गुजरात भी वर्षों से भाजपा शासित राज्य है. वहां लागु फीस रेगुलेशन एक्ट के विरुद्ध गुजरात के ब‌ड़े और प्रभावी निजी स्कूल एसोसिएशंस की अलग-अलग लगभग 40 बडी‌ याचिकाओं को हाईकोर्ट ने हर बार खारीज किया है. इससे यह समझ में आता है की छात्रों और अभिभावकों के हित में फीस रेगुलेशन एक्ट कितना ज़रुरी है और कोर्ट भी यह मानता है. साफ है की मप्र सरकार निजी विध्यालयों के पक्ष में हमेशा से है अभिभावकों के पक्ष में नही, अन्यथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्री हर कार्यकाल में सिर्फ डॉयलॉग नही बोलते बल्कि अब तक फीस रेगुलेशन एक्ट ला चुके होते. वर्तमान कोरोना काल में स्कुलों के पास फीस लेने के अपने बहाने हैं और अभिभावकों के फीस ना देने के अपने.

ऐसे में हर स्कूल और हर अभिभावक की आर्थिक स्थिती के मापदंद के आधार पर निर्णय लेना उचित हो सकता है.जिसमें काफी मेहनत है लेकिन मुमकिन है।

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