नीमच। मोरवन में निर्माणाधीन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के निर्माण के संबंध में जल, जमीन जलवायु और पर्यावरण के प्रतिकूल होने की आशंका है। इस कारण निर्माण से पूर्व आशंकाओ का निदान होना जरूरी है इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता जिनेंद्र सुराणा ने अपनी सोशल मीडिया की एक पोस्ट से अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाकर यह सुझाव दिया है कि की निवेश और निर्माण से पहले आशंका का निदान होना जरूरी है क्योंकि कोई भी निवेश हमारे जलवायु और पर्यावरण से अधिक बड़ा नहीं हो सकता है। वरिष्ठ पत्रकार जिनेंद्र सुराणा ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि सस्ते कपड़े उत्पादन की प्रक्रिया से भले ही ग्राहक, रिटेलर और फैक्ट्री मालिक को लाभ होता हो पर उसका गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव इंसानों और उस आबादी को भुगतना पड़ता है जहां यह उद्योग स्थित होते हैं।
कपड़ा उत्पादन की कई तकनीक है पर जो परंपरागत तकनीक है और उसके लिए भारी मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है । कुछ रिपोर्टों / अध्ययन पर गौर करें तो पाते हैं कि 1 किलो डेनिम कपड़ा उत्पादन की धुलाई और रंगाई के लिए 250 लीटर पानी की जरुरत होती है और 1 किलो सूती कपड़ा धोने और रंगने के लिए करीब 200 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है । निश्चित है कि यदि 1 किलो कपड़ा रंगने, धोने और फिनिशिंग पर ही सैकड़ों लीटर पानी खर्च होता है तो हजारों टन कपड़ा उत्पादन के लिए कितने करोड़ /अरब लीटर पानी की जरूरत पड़ती होगी ? कपड़ों की रंगाई, धुलाई और फिनिशिंग के बाद निकलने वाला वेस्ट पदार्थ यदि या पार्शियली ट्रीटेड (आंशिक रूप से उपचारित) ही वातावरण में छोड़ दिया जाए या छूट जाए तो उसका भी पर्यावरण पर गंभीर असर होता है। चूंकि ऐसे वेस्ट में ज्यादा मात्रा क्लोराइड की ही होती है पर इसके अलावा इसमें सोडियम, क्रोमियम लेड इत्यादि घातक पदार्थ भी मिलते हैं । जिसका मानव स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव होता है। हालांकि टेक्सटाइल कंपनियां अक्सर यह दावा करती है कि वह पर्याप्त क्षमता के एफ़्लुएंट सिस्टम (बहिःस्राव प्रणाली) और वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट (अपशिष्ट उपचार संयंत्र) स्थापित करेगी और जीरो लिक्विड डिसचार्ज (शून्य तरल निर्वहन) को सुनिश्चित करेगी पर यदि ऐसे ट्रीटमेंट प्लांट ने पूरी तरीके से काम नहीं किया या आंशिक तौर पर काम किया तो इससे निकलने वाला लिक्विड वेस्ट भूगर्भ, नालों, नदियों में जाएगा और वह हमारे जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्य को गंभीर रुप से प्रभावित करेगा । मोरवन क्षेत्र हरा-भरा है और प्रदूषण रहित भी है। जल से समृद्ध विशाल झील है जिससे नहरें जीवित रहती हैं इससे अच्छी खेती होती है और जावद की पेयजल आपूर्ति भी मोरवन डैम से ही होती है। प्रकृति का दिया सब कुछ है । अब हमारे हरे भरे क्षेत्र में एक कपड़ा उद्योग आना चाहता है और कहता है कि हमारी (टेक्सटाइल कंपनी) नजर आपके मोरवन डैम के पानी पर नहीं है हम तो यहां रोजगार देने आए हैं तो ऐसे में मन में सवाल तो उठेंगे ही कि आखिर करोड़ो अरबों लीटर पानी जमीन या जलाशयों से चूसने वाली कपड़ा फैक्ट्री हमारे क्षेत्र में ऐसी कृपा क्यों कर रही है ? और यदि इसकी कुदृष्टि हमारे मोरवन झील की विशाल जल राशि पर या यहां के अच्छे भूगर्भीय जल /अच्छे ग्राउंड वाटर लेवल पर नहीं है तो फिर यह पानी चूसू फैक्ट्री सिंगोली , रतनगढ़, नयागांव या कम जलराशि वाले क्षेत्र में भी तो स्थापित हो सकती ? वैसे भी हमारे लिए मोरवन का जल हमारी जीवन रेखा है और इस पर किसी को भी गिद्ध दृष्टि रखने की नहीं सोचना चाहिए न ही मोरवन के पानी पर लार टपकानी चाहिए । इन्हीं सब कारणों के चलते मोरवन क्षेत्र में स्थापित होने वाली टेक्सटाइल फैक्ट्री को लेकर कुछ सवाल हैं ।
१. यदि फैक्ट्री की नजर अच्छा भूगर्भीय जल और झील की जल राशि पर नहीं है तो यह फैक्ट्री कम पानी वाले क्षेत्र में स्थापित क्यों नहीं होती है ?
2. उत्पादन प्रक्रिया के लिए यह फैक्ट्री कौन सी कम पानी की तकनीक का इस्तेमाल करेगी ? उसमें कितना निवेश करेगी ?
3. कम पानी से कपड़े उत्पादन की प्रक्रिया बड़ी महंगी और खर्चीली मानी जाती है इससे कपड़े उत्पादन की लागत बहुत बढ़ जाएगी, ऐसे में सवाल उठता है कि देश में पहले से ही सस्ते कपड़े की मंडी के सामने महंगे कपड़े का खरीददार कौन होगा ?
4. 1 किलो कपड़े के उत्पादन धुलाई, रंगाई और फिनिशिंग पर कितना पानी खर्च होगा ? उस पानी का प्रबंध कहां से और कैसे करेगी ?
5. इस प्लांट की वार्षिक उत्पादन क्षमता क्या है ?
6. 1 साल की उत्पादन प्रक्रिया के लिए कुल कितने करोड़ /अरब लीटर जल खर्च होगा ? इतने पानी का प्रबंध कहां से और कैसे होगा ?
7. रेलवे (यानीकि भारत सरकार) ₹15 लीटर में जल (रेल नीर ) बेच रही है ऐसे में क्या कंपनी अपने यहां उपयोग होने वाले पानी का दाम ₹5 प्रति लीटर मोरवन पंचायत को दे सकती है ?
8. कितनी क्षमता में लिक्विड वेस्ट निकलेगा और उसके ट्रीटमेंट के लिए कितनी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट लगाएगी उस पर कितनी राशि खर्च की जाएगी ?
9. कई बार ऐसा देखा और सुना गया है टेक्सटाइल उद्योग से वातावरण में विचित्र किस्म की गंध निकलती है । जहां वेस्ट निस्तारण का सिस्टम फैल होने या निस्तारण का सही निदान नहीं होने पर जल स्रोत प्रदूषित होने लगते हैं कुएं का पानी हरा होने लगता है। मवेशी तक ऐसे पानी से मुंह मोड़ लेते । पर्याप्त खेती नहीं होती ? जमीनों के दाम गिर जाते हैं । इन सब पर कैसे काबू में रखेगी ?
10. कपड़ा उत्पादन में कई ऐसे रसायनों का उपयोग भी किया जाता है जोकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं पर कई बार कंपनियां सस्ते कपड़े का उत्पादन करने के लिए इनका उपयोग करती है इनसे निकलने वाला लिक्विड वेस्ट यदि जल में या जमीन में समा जाए तो उस पानी में क्लोराइड, सोडियम अन्य तत्वों की बहुलता होने लगातीं है इससे पेट की कई बीमारियां, त्वचा के रोग इत्यादि नहीं हो कंपनी इसकी रोकथाम के लिए क्या व्यवस्था करेगी ?
11. इस प्लांट स्थापना के लिए कौन सी शासकीय, श्रम, औद्योगिक, पर्यावरण, पंचायती एवं सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड स्वीकृति प्रक्रिया अपनाई गई है ।
12. उसकी पर्यावरणीय सुनवाई कब कहां हुई है ? उसमें कौन-कौन सी आपत्ति आई है और उनके निराकरण का क्या आश्वासन दिया गया है।
13. इस फैक्ट्री में कितने संख्या में स्थानीय लोगों को स्थाई और कंपनी रोल पर किस वेतन श्रृंखला का रोजगार मिलेगा ? यह किस फॉर्मूला से निकल गया है और इसका अनुमोदन किस शासकीय संस्था ने किया है ? 1
4. इस कंपनी में लगने वाली मैनपॉवर का कुल कितनी संख्या में रोजगार कंपनी रोल पर होगा और कुल कितने मैनपावर ठेका श्रेणी में रखी जाएगी ?
15. क्या कंपनी यहां पर स्कूल, अस्पताल की स्थापना करेगी ? क्या ऐसे अस्पताल में स्थानीय लोगों को निशुल्क इलाज(भर्ती ) की व्यवस्था और यहां के बच्चों को निशुल्क अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई की सुविधा मिलेगी ? क्या कंपनी ऐसे सामाजिक कार्य में निवेश करेगी ? उद्योग और उद्योगपति हमारे क्षेत्र में आए और निवेश करें भला यह किसे बुरा लगेगा पर यदि वह निवेश हमारे जल, जीवन, जलवायु, पर्यावरण और संसाधनों पर प्रतिकूल असर छोड़े या ऐसी कोई आशंका हो तो उसका निदान होना चाहिए ।
ऐसे किसी भी निवेश के पहले दो बार सोचना चाहिए जिससे हमारे जीवन और प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल असर पड़ता हो । इस संबंध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता महेश पाटीदार, एडवोकेट ने कहा कि कोई भी उद्योग हमारे जलवायु और पर्यावरण से अधिक महत्व नहीं रखता है । जनहित के व्यापक मुद्दे को देखते हुए जनता को ही स्वयं आगे जाकर आवाज बुलंद करना होगी ।आवश्यकता होने पर दस्तावेजों को प्राप्त कर इन आशंकाओं और प्रश्नों का निराकरण करने के लिए जनहित याचिका का सहारा लिया जाएगा।