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वामन जयंती: भगवान विष्णु के वामन अवतार ने दी विनम्रता और धर्मनिष्ठा की सीख, सीएम डॉ. मोहन यादव ने दी शुभकामनाएं

Neemuch headlines September 4, 2025, 2:12 pm Technology

भोपाल। आज वामन जयंती है। यह पर्व विष्णु जी के पांचवें अवतार भगवान वामन को समर्पित है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।

इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान वामन की कथा सुनते हैं। आज मंदिरों में विशेष आयोजन किए गए हैं, जहां भक्त भगवान विष्णु की और वामन अवतार की पूजा करते हैं। सीएम डॉ मोहन यादव ने इस दिन की शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि ‘भगवान श्री विष्णु जी के पांचवें अवतार भगवान वामन जी के प्राकट्य दिवस की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। धर्म, भक्ति व दानशीलता के पावन प्रतीक भगवान वामन जी के आशीर्वाद से चहुंओर सुख, समृद्धि और शांति आए, यही प्रार्थना है।’

वामन जयंती का महत्व:-

वामन जयंती भगवान विष्णु के वामन अवतार के जन्मतिथि के अवसर पर मनाई जाती है। यह पर्व भक्तों को धर्म, विनम्रता और दान का महत्व बताता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वामन अवतार भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना और दानव राजा बलि के अहंकार को नियंत्रित करने के लिए लिया था। यह अवतार विनम्रता, भक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। वामन जयंती के दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान वामन की पूजा करने से सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ‘ श्रीविष्णु के वामन अवतार की कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में दानव राजा बलि ने अपने तप और पराक्रम से तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) पर अधिकार कर लिया था।

बलि एक शक्तिशाली और धर्मपरायण राजा था लेकिन उसका अहंकार बढ़ता जा रहा था। देवताओं ने भगवान विष्णु से स्वर्गलोक को वापस लेने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण ‘वामन’ का रूप धारण किया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। बलि ने वामन को देखकर उनका स्वागत किया और उनसे कुछ मांगने का आग्रह किया। वामन ने विनम्रता से तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने हंसते हुए उनकी मांग स्वीकार कर ली। इसके बाद वामन देव ने अपने पहले पग में पूरी पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया। फिर उन्होंने तीसरे पग के लिए कोई स्थान न होने पर बलि से पूछा कि अब वह अपना तीसरा पग कहां रखें। इसके बाद राजा बलि ने अपनी भक्ति और वचनबद्धता दिखाते हुए कहा कि वह अपना सिर उनके चरणों में अर्पित करते हैं। वामन देव ने अपना तीसरा पग बलि के सिर पर रखा और उसे पाताल लोक भेज दिया। बलि की भक्ति और दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पाताल का राजा बनाया और वरदान दिया कि वह हर वर्ष कुछ समय के लिए अपने प्रजा से मिलने आ सकता है।

ये कथा अहंकार पर भक्ति और विनम्रता की जीत को दर्शाती है।

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