नीमच। गीता में कहा गया है कि व्यक्ति अपने पुण्य परमार्थ का कर्म करता रहे और फल की इच्छा नहीं करें फल ईश्वर पर छोड़ दें। क्योंकि यदि हमने अच्छा कर्म किया है तो उसका फल हमें अवश्य अच्छा ही मिलेगा। परमात्मा अच्छे कर्मों का फल शीघ्र देता है वह अपने पास नहीं रखता है। विश्वास नहीं हो तो हम अच्छे कर्म करके परिणाम देखें तो हमें स्वतः ही समझ आएगा कि अच्छे कर्मों का फल सदैव अच्छा ही मिलता है। गीता ज्ञान व्यक्ति को सत्य की राह के साथ चलकर पवित्र कर्म करने की प्रेरणा देता है । गीता ज्ञान को जीवन में आत्मसात करें तो मनुष्य के जीवन का कल्याण हो सकता है। यह बात रामानंद पुरी जी महाराज ने कही। वे श्री पंचमुखी बालाजी मंदिर समिति काना खेड़ा के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा की धर्म सभा में बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि समझदार लोग यश अपयश की चिंता नहीं करते हैं अच्छे मार्ग पर सदैव आगे बढ़ते रहते हैं।
गोवर्धन पूजा का अर्थ होता है की प्रकृति की रक्षा करना यदि हमें पुण्य कर्म करना है तो हम पांच पेड़ लगाए और उन पेड़ों को संतान की तरह पालन पोषण करें धरती स्वर्ग बन सकती है। तपस्वी प्रतिभाशाली चरित्रवान का सम्मान करना चाहिए । ऊंच नीच का भेदभाव नहीं करना चाहिए तभी देश का विकास हो सकता है। सुनीति को अपनाएं तो ध्रुव जैसा बालक अवश्य जन्म लेगा जो भगवान की गोद प्राप्त करा देगा। मानस पूजा मन से होती है। आत्मा और मन निर्मल हो तभी परमात्मा के दर्शन होते हैं। कण कण में भगवान होता है। प्रकृति पशु पक्षी धरती पेड़ पौधे सभी प्राणियों में भगवान का स्वरूप होता है। जीव दया कर प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए। मन पवित्र करे घर स्वर्ग बन सकता है। बेटा बेटी को पढ़ाना चाहिए लेकिन पढ़ाई के साथ नैतिक शिक्षा के संस्कार के सिखाना चाहिए। तभी वे अपने जीवन को सफल बना सकें। सुनीति पर चले तो ध्रुव जैसा बालक अवश्य जन्म लेगा जो भगवान को प्राप्त करा देगा। भागवत कथा में महाराज श्री ने शिव यज्ञ, दक्ष प्रजापति, संवाद मीरा, राधा कृष्ण, कबीर तुलसी, प्रियव्रत उत्तानपाद सुनीति, तुलसीदास के प्रसंग, सुरुचि आदि धार्मिक प्रसंग के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
आरती में जिला पंचायत सदस्य तरुण बाहेती, अखिल भारतीय मेनारिया समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरज मेनारिया उज्जैन, बाबूलाल नागदा, राधेश्याम मेनारिया, सहित अनेक लोग लोग उपस्थित थे। श्रीमद् भागवत कथा में सभी महिलाएं लाल परिधानों में सहभागी बनी। आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया गिरिराज पर्वत प्रसंग सुन श्रद्धालु भाव विहल हुए - - भागवत कथा के मध्य जब महाराज श्री ने इंद्रदेव की पूजा को छोड़कर गिरिराज पर्वत की पूजा करने का प्रसंग सुनाया तो भक्ति पांडाल में गिरिराज तेरी शरण में क्या कहना भजन पर भक्ति कर श्रद्धालु भक्त झुम उठे और भाव विहल हो गए ।