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दिन में तीन रूप में नजर आने के साथ ही भक्तो की मंशा पूर्ण करती है मां आंतरी, जिव्हा अर्पित करने की है परंपरा।

Neemuch headlines October 7, 2024, 3:45 pm Technology

मनासा। तहसील में एक ऐसा चमत्कारी मंदिर है जहां पर आज तक भक्तो को निराशा नहीं मिली। दिन में तीन रूप बदलने वाली देवी के मंदिर में भक्त भी मंशा पूर्ण होने पर कोई लोटन यात्रा कर पहुंचता है तो कोई भक्त माता को अपनी मुख की जिव्हा अर्पित कर देता है। और देवी मां भी इतनी दयालु है की भक्त की मुख की जिव्हा मात्र नो दिनों में वापस लोटा देती है। जी हा यह मंदिर है मनासा तहसील से महज 27 किमी दूर आंतरी बुजुर्ग गांव के बाहर रेतम नदी के तट पर, जो आंतरी माता के नाम से जाना जाता है। आंतरीमाता मंदिर में श्रद्धालु मन्नत मांगते हैं, मन्नत पूरी होने पर जीभ चढ़ाते हैं। इसमें नारी शक्ति भी पीछे नहीं है। हर साल करीब 16-17 महिलाएं देवी को जीभ चढ़ाती है। 101 साल में करीब 1616 महिलाएं मंदिर में जीभ चढ़ा चुकी हैं।

विक्रम संवत् 1327 में तत्कालीन रामपुरा स्टेट के राव सेवा-खीमाजी द्वारा 7333 रुपए की लागत से मंदिर का निर्माण करवाया था। इतिहासकार डॉ. पूरण सहगल ने चारण की बेटी पुस्तक में लिखा है आंतरी का मंदिर करीब 700 वर्ष पुराना है। जगत जननी जगदम्बा दक्षिण दिशा से नदी के हनुमान घाट से मंदिर में आकर विराजमान हुई हैं। आज भी हनुमान घाट के पत्थर पर मां के वाहन का पदचिह्न अंकित है। जहां पूजा-अर्चना होती है तथा दूसरा पदचिह्न मंदिर पर अंकित है। देवी स्वयं प्रतिष्ठित हुई है और भैंसावरी माता के नाम से भी जानी जाती है। गर्भगृह में दाईं ओर शेर की सवारी पर मां दुर्गा की दिव्य प्रतिमा है। मंदिर में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। मन्नत मांगने पर श्रद्धालु जीभ काटकर चढ़ाते हैं। और 9 दिनों तक आंतरी माता की सेवा में लग जाते है। नो दिनों में जब भक्त को वापस जीभ आ जाती है तो वह माता के जयकारे लगाकर वापस गंतव्य स्थान चले जाते है। यह परंपरा करीब 700 साल से चली आ रही है।

बता दे माता का मंदिर नौका विहार के आनंद से कम भी नहीं। माता के मंदिर की चारो ओर भरे रेतम नदी का जलस्तर माता के मंदिर की ओर शोभा बढ़ाता है। भक्त माता के दर्शन के बाद स्टिंबर में घूमकर नौका विहार का आनंद भी जमकर लेते है। वर्तमान में शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो चुकी है ऐसे में आंतरी माता मंदिर समिति द्वारा स्वल्पाहार की व्यवस्था भी की गई है। जिसमे माता के मंदिर पर आने वाले उपवास भक्त साबूदाने की खिंचड़ी खा सके।

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