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आत्मा की शुद्धि के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है- सुप्रभ सागर जी महाराज, दिगम्बर जैन समाज में चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित

Neemuch headlines September 25, 2024, 4:10 pm Technology

नीमच । हमें शरीर की नहीं आत्मा के कल्याण की चिंता करनी है। यदि जीवन में आत्मा को शुद्ध बना लिया तो मोक्ष प्राप्त कर लेंगे और बार-बार जन्म- मरण के चक्कर में नहीं फंसना पड़ेगा। आत्मा और शरीर एक नहीं बल्कि अलग-अलग है शरीर से आत्मा जुड़ी है। शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा उससे अलग हो जाती है और किसी दूसरे शरीर में जन्म लेती रहती है। यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही।

वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मंदिर में आगम पर्व पर आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सम्यक दृष्टि जीव की बहुत विशेषता होती है। वह सप्त व्यसन का त्यागी होता है। मद मधु का त्यागी होता है। बाजार में मिलने वाले सभी खाद्य सामग्री में जीव हिंसा होती है इसलिए टाटरी का उपयोग करने से सदैव बचना चाहिए नहीं तो हमारा पाप कर्म बढ़ता है। विभिन्न दवाइयों एवं उत्पादन में मांस, नकली शहद, मदीरा अनेक रासायनिक केमिकल मिले होते हैं जिसमें जीव हिंसा होती है इसलिए हमें इनके उपयोग से सदैव बचना चाहिए और अपना पुण्य कर्म सुरक्षित रखना चाहिए। दिगंबर जैन समाज उपाध्यक्ष जयकुमार बज, मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि धर्म आगम पर्व के पावन उपलक्ष्य में विभिन्न संस्कार पर आधारित पूजन अभिषेक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं। मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने कहा कि सम्यक दृष्टि जीव संसार के भौतिक पदार्थ का सावधानी पूर्वक उपयोग करता है। पशु के पास में कुछ भी नहीं होता है फिर भी 24 तरह के परिग्रह उसके पास रहते हैं। साधु के पास संक्षिप्त में संसाधन होते हैं फिर भी वह संतुष्ट रहते हैं इसलिए सच्चे साधु कहलाते हैं। हमारे पास जो पर्याप्त संसाधन मिले हैं हमें उसी में संतुष्ट होकर जीवन जीना चाहिए तभी हम सच्चे श्रावक कहलाते हैं। हमें भगवान की भक्ति 12 भावना का चिंतन करना चाहिए।

यह समय सार का कार्य करती है। हम बचपन से ही उपवास रात्रि भोजन त्याग का अभ्यास करते हैं तो अंत समय में आहार पानी का त्याग कर सरलता पूर्वक समाधि मरण प्राप्त कर सकते हैं। शरीर से त्याग करना अच्छी बात है लेकिन मन का त्याग करें तभी हमारा संसार छूट सकता है। पेट तो चार रोटी दो सब्जी से भर सकता है लेकिन मन की इच्छाओं की पूर्ति को मर्यादा और संयम से ही पूर्ण किया जा सकता है। आत्म तत्व का चिंतन करना चाहिए तभी परिग्रह का त्याग हो सकता है। स्त्री से परिवार बढ़ता है और फिर पाप कर्म में बढ़ते हैं। परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण के शताब्दी वर्ष मे परम पूज्य मुनि 108 श्री वैराग्य सागर जी महाराज एवं परम पूज्य मुनि 108 श्री सुप्रभ सागर जी महाराज जी का पावन सानिध्य मिला।

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