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आचार्य वर्धमान सागर जी निर्दोष सरलता के संस्कार की शिक्षा के जनक थे - सुप्रभ सागर जी महाराज, दिगम्बर जैन समाज ने आचार्य वर्धमान सागर जी का अवतरण दिवस पुण्य परमार्थ सेवा के साथ मनाया

Neemuch headlines September 10, 2024, 6:15 pm Technology

नीमच । अंतर मन के भीतर सरलता को आत्मसात किए बिना आत्म तत्व की प्राप्ति नहीं होती है। सरलता के संस्कारों से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर समस्या का सारा निराकरण सरलता से पूरा हो जाता है। जिस व्यक्ति को सफलता के शिखर की ओर आगे बढ़ना है। उसे अंतर्मन की गहराइयों में सरलता को आत्मसात करना होगा तभी आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है। अचार्य वर्धमान सागर जी महाराज सरलता के संस्कार की शिक्षा के जनक थे। यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही। वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मांगलिक भवन में परम पूज्य चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण के शताब्दी वर्ष एवं पर्यूषण पर्व के पावन उपलक्ष्य में आयोजित 10 दिवर्सीय आवासीय संस्कार प्रशिक्षण शिविर धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि दीक्षा के 50 वर्ष बाद भी उन्होंने सरलता को जीवन से अलग नहीं होने दिया निरंतर 35 वर्षों तक आचार्य पद पर रहते हुए किसी भी क्षेत्र का निर्माण नहीं करवाया।

सामाजिक एकता के लिए सदैव प्रयास किया उन्होंने राजस्थान के एक नगर में श्वेतांबर जैन समाज के दो विभाग थे उन दोनों के बीच सामंजस्य से स्थापित कर एकरूपता प्रदान करवाई जो आज भी 25 साल बाद विद्यमान है। आचार्य श्री का जन्म पर्युषण पर्व के 10 लक्षणों में से उत्तम आर्जव धर्म के दिवस पर ही उनका अवतरण होना ही का प्रतीक है। उन्होंने इसको जीवन पर्यंत सार्थक किया। जीवन में हम जब तक सरल नहीं बनेंगे तब तक हमारे ऊपर कोई विश्वास नहीं करेगा। सरल परिणाम को लाएंगे तभी लोग विश्वास करेंगे। कुटिलता को छोडे बिना आत्मा में प्रवेश नहीं मिलता है। जलेबी टेढ़ी-मेढ़ी होती है लेकिन जलेबी के बाहरी आवरण में मिठास होता है उसके अंतर में मिठास नहीं होती है। हमें जलेबी की तरह टेढ़े-मेढ़े संस्कारों को नहीं अपनाना है ।। हमें जीवन में गन्ने की तरह सीधे सरल संस्कारों को अपनाना चाहिए। लेकिन हमें मानवता का जीवन जीते हुए जिस प्रकार गन्ने के भीतर मिठास होती है हमें इस मिठास इस की तरह अपनी आत्मा में मिठास के संस्कारों को आत्मसात करना है। जिस प्रकार गन्ने में गांठ नहीं होती इस प्रकार हमारे मन में भी हमें किसी के भी प्रति दुर्भावना की गांठ नहीं रखना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है यदि हमारा मन साफ नहीं रहता है। चोरी कपट छल मायाचारी के कारण व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलती है और पशु योनि में जन्म लेना पड़ता है। दिगंबर जैन चातुर्मास समिति सचिव अजय कासलीवाल, मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि पर्यूषण पर्व के पावन उपलक्ष्य में विभिन्न धार्मिक संस्कार पर आधारित पूजन अभिषेक का निःशुल्क प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जा रहा है।

जिसमें पूजा की विधि पद्धति जीवन जीने की कला के विभिन्न संस्कारों का तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जा रहा है। पर्युषण पर्व के 10 लक्षण के अंतर्गत जाजु बिल्डिंग के समीप दिगंबर जैन मांगलिक भवन में वन में प्रर्युषण पर्व के पावन उपलक्ष्य में आयोजित धर्म संस्कार प्रशिक्षण शिविर में उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए सागर जी नसा ने कहा कि हम आचार्य मुनि वैराग्य सागर वर्तमान सागर जी के उपदेशों पर चलकर आत्मा के घर में पहुंच सकते हैं। सरलता के साथ एकाग्रता से भी धर्म को समझे तो जीवन का कल्याण हो सकता है। आचार्य वर्धमान सागर जी का अवतरण दिवस मुक प्राणीयों के पुण्य परमार्थ सेवा कार्यों के साथ मनाया। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के अवतरण दिवस के पावन उपलक्ष्य में गौशाला में हरी घास, जिला चिकित्सालय में फल वितरण, मुक बधिर दिव्यांग बच्चों को निःशुल्क भोजन वितरण आदि सेवा प्रकल्प आयोजित कर मनाया गया।

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