मनासा । पर्यावरण संरक्षण गतिविधि जिला नीमच द्वारा, मनासा स्थित रामचंद्र विश्वनाथ महाविद्यालय परिसर में एनजीओ संस्था प्रमुख एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा " अमृत प्रकृति वंदन " कार्यक्रम का आयोजन किया गया पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के जिला एनजीओ संस्थान प्रमुख प्रहलाद धनगर की अध्यक्षता में, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के जिला संयोजक देवेंद्र प्रजापति ने पौधे की पूजा कर प्रकृति का वंदन किया, प्रजापति ने अपने उद्बोधन में कहा कि जो कार्यकर्ता सामाजिक संस्थाओं का निर्माण कर समाज के बीच में, समाज के लोगों के साथ, मिलकर समाज के स्तर को ऊचा उठाने के लिए उत्कृष्ट कार्य करते है, वह समाज निर्माण और प्रकृति संरक्षण की महत्वपूर्ण कड़ी है, प्रकृति पांच तत्व, पृथ्वी, वायु, आकाश, जल और अग्नि तत्व से मिलकर बनी है, जब पृथ्वी तत्व का बैलेंस बिगड़ता है, तो भूकंप और लैंडस्लाइड जैसी घटनाएं बढ़ जाती है, आपदाएं विकराल रूप लेने लगती है, है, वायु का बैलेंस बिगड़ता है।
तो, बीमारी फैलने वाले सूक्ष्म जीवाणु तीव्र गति से फैलते हैं स्वास्थ्य संबंधी महामारी बढ़ जाती है, आकाश तत्व का बैलेंस बिगड़ है तो कहीं अती वर्षा तो कहीं अकाल पड़ता है, अग्नि तत्व का बैलेंस बिगड़ है तो कहीं अधिक ठंड तो कहीं अधिक गर्मी का प्रकोप फैलने लगता है, जिससे समाज बहुत प्रभावित होता है, जल तत्व का बैलेंस बिगड़ता है, तो 84 लाख योनियों के जीव तीव्र गति से समाप्त होने लगते है और अकाल की स्थिति अपना विकराल रूप धारण करने लगती है, इन सब का ध्यान रखते हुए भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं अपने अवतार कल में , पहाड़ों का संरक्षण किया, वनों का संरक्षण किया, जल का संरक्षण किया, जब यमुना नदी में कालिया नाग यमुना नदी के जल को दूषित करता था जिस कारण वह जल किसी भी जीव जंतु पशु पक्षी के पीने योग्य नहीं था, जब श्री कृष्ण भगवान ने कालिया नाग को परास्त कर अन्यत्र पहुंचा और यमुना नदी का जल स्वच्छ किया, भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गौ माता का खसंरक्षण किया।
भगवान श्री राम ने श्रीलंका जाने के लिए मार्ग में समुद्र बाधा बना है था, तो भगवान ने जैसे ही समुद्र को सुखाने के लिए तर्कस से अग्नि तीर निकला तो समुद्र देव प्रकट हो गऐ और उन्होंने कहा कि भगवान आप ही जल तत्व को समाप्त करेंगे तो, प्रकृति प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा और यह पृथ्वी समाप्त हो जाएगी, तो भगवान को तुरंत अपनी भूल का एहसास हुआ और फिर समुद्र पर सेतुबंध का निर्माण कर श्रीलका पहुंचे, इस प्रकार प्रकृति का संरक्षण किया । राजस्थान में मेवाड रियासत के महाराजा अभय सिंह ने नया राजभवन का निर्माण करवाया और जब उन्हें बड़ी मात्रा में लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने मंत्री को व्यवस्था करने के लिए कहा, मंत्री ने लाव लश्कर व सैनिकों को लेकर लकड़ी की तलाश में निकल गए, जोधपुर से 21 किलोमीटर दूर खेजड़ली नामक गांव पहुंचे, जहां खेजड़ी के बड़ी मात्रा में, विशाल वृक्ष उपलब्ध थे मंत्री ने सैनिकों को इशारा किया और सैनिको ने पेड़ों पर कुलहड़ियां चलाने लगे, आवाज सुन अमृता देवी बिश्नोई व उसकी तीनों पुत्री घर से बाहर आई और पेड़ काटने का विरोध करते हुए कहा कि, वृक्ष हमारे देवता है, हम इनकी पूजा करते हैं, हम इन्हें रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र बनते हैं, हम इन वृक्षों को नहीं काटने देंगे और वृक्ष से अमृता देवी बिश्नोई जा लिप्टी, सैनिको ने अमृता देवी का सिर कलम कर दिया, यह देख उनकी तीनों पुत्री भी पेड़ को बचाने के लिए पेड से जा लिप्टी, सैनिको ने तीनों पुत्री का भी सर कलम कर दिया और जैसे ही यह घटना गांव में पता पड़ी तो बिश्नोई समाज के लोगों ने, पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपटते गए, उसे दिन 363 लोगों के सर काटे गए और जब यह घटना राजा को मालूम पड़ी तो उन्होंने राजाग्या देश निकाला की आज से इस राज्य में खेजड़ी के वृक्षों को नहीं काटा जाएगा।
उस समय कि पर्यावरण के प्रति यह सबसे मार्मिक घटना था, उस समय पर्यावरण के प्रति समाज मे कितनी अधिक जागृति थी इसका अंदाजा हम इस घटना से लगा सकते हैं, वर्तमान में पर्यावरण विश्व की सबसे गंभीर समस्याएं हैं, अमृत प्रकृति वंदन का उद्देश्य है कि प्रत्येक समाज के प्रत्येक नागरिकों का अपने दैनिक आचरण में प्रकृति संरक्षण का स्वभाव बने, तो निश्चिन्त रूप से हम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ सकते है। इस अवसर पर डॉक्टर अर्जुन सहित एनजीओ संस्थाओं के प्रमुख, समाज के बीच में कार्य करने वाले समाजीक कार्यकर्ता एवं विद्यार्थी उपस्थित है। अंत में प्रहलाद धनगर ने सभी का आभार प्रकट किया।