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साधर्मिक भक्ति का पुण्यफल मोक्ष का प्रथम प्रवेश द्वार है- आचार्य जिन सुंदर सुरीश्वर जी मसा।

Neemuch headlines September 1, 2024, 4:05 pm Technology

नीमच । निराश्रित गरीब को भोजन कराना सबसे बड़ा पुण्य होता है। साधर्मिक भक्ति से पाप कर्म का नाश होता है। और पुण्य बढ़ता है। इसका पुण्य जन्म -जन्म तक फलदाई रहता है। साधर्मिक भक्ति का फल मोक्ष का प्रथम प्रवेश द्वार होता है। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज ने कहीं।

वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ पुस्तक बाजार के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि हमारे समाज में कोई भी साधार्मिक बंधु आर्थिक रूप से कमजोर हो उसकी सहायता करना प्रत्येक समाजजन का कर्तव्य है। जीवन में हमें पहले विनम्र बनना होगा तब हम क्षमा मांगेंगे उदार बनेंगे तब हम क्षमा करेंगे जिस व्यक्ति के मन में दया करुणा सद्भाव का पुण्य नहीं होता है वह जैन समाज का सदस्य नहीं बन सकता है। कुमारपाल महाराज ने मृत्यु की सजा पाने वाले व्यक्ति को इसलिए माफ कर दिया था कि उसने अरिहंत भगवान की पूजा की थी। जैन साधार्मिक भक्ति से फांसी की सजा भी माफ हो सकती है।

इसलिए संसार में रहने वाले सभी लोगों को एक दूसरे को क्षमा करते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए । अहिंसा का पालन साधर्मिक भक्ति क्षमापना, पैदल विहार आदि का पालन करना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। संसार में ऐसे कई लोग हैं जिनको दो समय का पेट भर खाना भी नहीं मिलता है। बेटे को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है। दवाई के लिए अनुकूलता नहीं होती है। ऐसे समय में तीन प्रकार से भक्ति कर हम सहायता कर सकते हैं भोजन द्वारा हमारे से जितनी अनुकूलता हो उतना राशन हर महीने उनके घर पहुंचा सकते हैं। जिसके कारण धर्म बंधु को दो वक्त पेट पर भोजन मिल जाएगा। सहायता सिर्फ राशन देने से परमानेंट सॉल्यूशन नहीं निकलने वाला है इसलिए हमारे साधर्मिक बंधु को ऐसी जगह पर नौकरी लगाना चाहिए जिससे उनको किसी के सामने हाथ फैलाना नहीं पड़े। समाज में गौरव से जी सके और कोई बड़ी मुश्किल में हो तो आर्थिक सहायता करो । नौकरी पर लगाकर धर्म बंधु को आर्थिक सुदृढ़ बना दिया जाए लेकिन उसके जीवन में कोई कुसंग है तो उसको छुड़वाने जैसा पुण्य दूसरा क्या हो सकता है। व्यक्ति को कुसंगत से बचेगा तो यानी परिवार सुखी बनेगा और धर्म बंधु दुर्गति में जाने से बचेगा। दूसरे नंबर पर हर व्यक्ति के साथ क्षमा मांग लेनी चाहिए जिस व्यक्ति के साथ मन मुटाव हुआ उसके पास जाकर पैरों में गिरकर क्षमा मांग क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।

बिगड़ा हुआ संबंध कहीं ना कहीं मुश्किल खड़ा कर देगा । इसलिए सबके साथ मधुर व्यवहार करना चाहिए यह पर्युषण महापर्व का हार्ट है आत्मा को पवित्र बनाने के लिए तप धर्म का आचरण भी करना चाहिए क्योंकि तप से किए हुए पाप धुल जाते हैं। आत्मा शुद्ध बन जाती है और तथा दुर्गति नहीं होती है। चौथे नंबर में प्रभु की बड़ी रथ यात्रा निकालनी चाहिए। प्रभु को पास में जाकर धन्यवाद देना चाहिए ऐसा उत्तम मानव जन्म आपकी कृपा से हमें मिला है। सद्बुद्धि मिली है। सदाचारी जीवन मिला है। और अंत में प्रभु से यही प्रार्थना करना चाहिए कि जैसे यह जन्म अच्छा मिला वैसे अगला जन्म भी हमें अच्छा मिले जिससे हमारी आत्मा का कल्याण हो सके। क्षमापना पर्व से पूर्व सभी भाई- भाई, सास बहू, देवरानी जेठानी, ननंद भोजाई, भाई-बहन, पिता पुत्र, माता पुत्र सभी एक दूसरे से कोई विवाद हो तो क्षमा माग माग लेवे। तभी आत्मा पवित्र हो सकती है। प्राचीन काल में एक बार द्ववारिका की जनता ने एक साथ हजारों आयम्बिल तप साधना की तो राजा ने उन्हें माफ कर दिया था। हम जिस प्रकार का दान भगवान को समर्पित करते हैं। भगवान उस प्रकार का फल हमें वापस प्रदान करता है। इस अवसर पर साधार्मिक भक्ति के लिए समाज की 11 महिलाओं ने अपने-अपने अंगूठी , हार, चूड़ियां, पायजेबआदि गहने भी समर्पित कर दान कर दिए। समाज वर्ग के अनेक वरिष्ठ समाज जनों ने अपनी ओर से साधर्मिक भक्ति के लिए सम्मान जनक राशि का दान करने की घोषणा की । दान की घोषणा के बाद सभी समाज जनों ने आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया। अवसर पर विभिन्न धार्मिक चढ़ावे की बोलियां लगाई गई जिसमें समाज जन में बढ़-चढ कर भाग लिया।

रंगोली व छः इस अवसर पर पूजा का पाठ अक्षत रंगोली दीपक प्रज्वलित कर सजाया गया। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। प्रतिदिन सुबह 9 बजे प्रवचन सुनने व साध्वी वृद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया।

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