नीमच । न्यूज़ मनुष्य यदि प्रतिदिन नरक के दुखों का स्मरण करें तो वह जीवन में कभी भी पाप कर्म नहीं कर नहीं करेगा। वह सदैव पुण्य कर्म की ओर ही ध्यान देगा। पाप कर्मों से सदैव बचना चाहिए और पुण्य कर्म के लिए सदैव धर्म सत्संग प्रवचन से जुड़ना चाहिए। नरक के दुखों का स्मरण करें तो विरक्क्ति हो जाती है। पाप कर्मों से नहीं बचेंगे तो नरक का दुःख झेलना पड़ेगा।
यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही। वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हम संसार में इतने आसक्त है कि वास्तविक ज्ञान को जान नहीं पाते हैं। संसार में शरीर नाशवान है मृत्यु शाश्वत है। भौतिक संसाधनों में सुख मानते हैं आत्मा की सच्चाई को समझ नहीं पाते हैं। मनुष्य जन्म दुर्लभ है। मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने कहा कि मन वचन काया के असुर प्रवृत्तियों को रोकने काही को ही शील वृत कहते हैं आत्मा का स्वभाव शांति में होता है काम को जितना ही शील व्रत का पालन करना होता है। पर पदार्थ भौतिक पदार्थों में इतना आसक्त होते हैं कि मनुष्य स्वयं को भूल जाता है। पशु योनि में चाहे कितना ही दुख क्यों ना हो पशु कभी भी आत्महत्या नहीं करता है। मानव यह गलती करता है आत्महत्या करना पाप है। आत्महत्या करने वाले की गति नरक गति ही है उसकी कभी सद्गति नहीं होती है
इसलिए कभी भी आत्महत्या नहीं करना चाहिए। आत्मा का चिंतन करना चाहिए। नरक की गति से बचना है तो स्त्री की संगति का त्याग करना होगा। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल में स्त्री और पुरुष एक दूसरे से बहुत दूर से ही पर्दे की आड़ में ही बात करते थे। संस्कृति की मर्यादा का पालन करते थे इसलिए उस समय में अपराध भी बहुत कम होते थे। मनुष्य विषयों में इतना आसक्त हो जाता है कि व्यक्ति अपराध की ओर कदम बढ़ा देता है भौतिक संसाधनों में कभी भी शांति नहीं मिलने वाली है। काम के वश में व्यक्ति परिवार को भी त्याग देता है। मन हाथी के समान चंचल होता है वह कभी भी आत्म शांति प्राप्त नहीं कर सकता है। अज्ञानता में व्यक्ति अपना अहित कर बैठता है। दान और पुण्य परमार्थ का कार्य जल्दी करना चाहिए इसमें कभी देर नहीं करना चाहिए। संस्कृति की सुरक्षा करना है तो भारतीय फिल्मों में से स्त्री राग विषय को हटाना चाहिए। विदेश में फिल्मों का विषय मारपीट है यह भी गलत है यह हिंसा को बढ़ावा देता है इसे भी हटाना चाहिए तभी दुनिया में शांति स्थापित हो सकती है। परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण के शताब्दी वर्ष मे परम पूज्य मुनि 108 श्री वैराग्य सागर जी महाराज एवं परम पूज्य मुनि 108 श्री सुप्रभ सागर जी महाराज जी का पावन सानिध्य मिला।
उक्त जानकारी दिगम्बर जैन समाज एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स, मिडिया प्रभारी अमन विनायका ने दी।