नीमच ।मनुष्य भव हमें बहुत पुण्य फल के प्रभाव से मिला है, इस भव में हम ऐसा पाप कर्म नहीं करें जिस कारण हमें पशु भव मिले या नरक में जाना पड़े। कई बार हम पाप कर्म तो सीमित करते हैं लेकिन पाप कर्म का पंचखाण नहीं होने के कारण अनावश्यक रूप से अन्य पापों का भार उठाना पड़ता है, इसलिए जरूरी है कि हम आवश्यक पाप कर्म से बचे । आवश्यकता से अधिक द्रव्य एवं पदार्थ का उपयोग नहीं करने का पंचखाण ले। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज के शिष्य रत्न पू. पन्यास तत्वरुचि मसा. ने कहीं। वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ ट्रस्ट के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन समाज के लोग धन तो बहुत कमाते हैं ल लेकिन संस्कार छूट रहे हैं चिंतन का विषय है महात्मा गांधी जब विदेश जा रहे थे उससे पूर्व उनकी माताजी जैन साधु के पास ले गई थी और मांसाहार का उपयोग नहीं करना, मदिरापान नहीं करना, पर स्त्री का गमन नहीं करना तथा चोरी नहीं करना आदि नियमों का संकल्प दिलाया था। यदि हमारा बच्चा कहीं चोरी करता है तो उसे एक थप्पड़ मार कर सबक देना चाहिए की चोरी करना पाप है चोरी के अपराध करने से जेल की सजा मिलती है। बच्चा जीवन में कभी चोरी नहीं करेगा। यदि हम हमारे माता-पिता की सेवा करेंगे तो यही संस्कार हमारे बच्चों में आएंगे और बच्चे अपने माता-पिता की सेवा का संस्कार सीखेंगे। जब कभी संपत्ति का बंटवारा हो तो माता-पिता की सेवा अपने हिस्से में लेना चाहिए। सास यदि बहू को बेटी की तरह प्रेम दे तो बहू अपने माता-पिता को भूल जाए। तभी वह घर स्वर्ग बन सकता है। हम परमात्मा को तो मानते हैं लेकिन परमात्मा के उपदेश नहीं मानते हैं चिंतन का विषय है। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे प्रवचन करने के व साध्वी वृंद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया।