परमात्मा की अंतिम देशना जीवन जीने की कला सिखाती है आचार्य - प्रसन्नचंद्र सागरजी।

Neemuch headlines November 6, 2023, 8:28 pm Technology

नीमच । मानव जीवन में पवित्र भाव का अत्यधिक महत्व है। हमारा पुण्य कमजोर होगा तो भाव भी कमजोर होंगे। यदि हमें संसार में रहते हुए अपने पाप कर्मों की निर्जरा करनी है तो उत्तराध्ययन सूत्र का अध्ययन करना चाहिए। उत्तराध्ययन सूत्र में 36 अध्ययन है। परमात्मा की अंतिम देशना जीवन जीने की कला सिखाती है। जैन आगमों में चरित्र की जो व्याख्या है वह व्यापक है जो अपने आप में रमन करें वही चरित्र है। अर्थात जो प्राणी अपनी आत्मा में रमन करता है। उसे चरित्र कहेंगे। यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पंचम काल में जो व्यक्ति सच्चे धर्म से जुड़ेगा वही बचेगा। धर्म के समीप रहेंगे तो संसार से बचेंगे संसार में जीव 1 मिनट में कहां से कहां चला जाता है। जितना समय धर्म से जुड़ेंगे उतना समय हम अधर्म से बचेंगे। धर्म पुण्य बढ़ाएगा और पाप से बचाएगा। धर्म का ज्ञान भाव को शुद्ध करता है। यदि हमें जीव, अजीव, पाप, पुण्य का ज्ञान होगा तो भाव और मजबूत होंगे । भाव मजबूत होंगे तो हमारा आत्म कल्याण हो सकता है। सज्जन को निमंत्रण देना चाहिए चोर को निमंत्रण नहीं दिया जाता है। श्रावक संसार में रुचि नहीं ले दीक्षा त्याग की भावना को समझे पुण्य प्रबल हो तो मिट्टी भी सोना बन जाती है और पुण्य प्रबल नहीं हो तो सोना भी मिट्टी बन जाती है। इसलिए पुण्य कर्म करना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है। यदि हम बच्चों को किताबी शिक्षा का ज्ञान देंगे तो वह धन तो कमा सकता है लेकिन सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर सकता है । सच्चा सुख प्राप्त करना है तो बच्चों को प्रेम सदभाव धार्मिक ज्ञान के संस्कार भी सीखाना चाहिए। जो बच्चे धार्मिक नैतिक संस्कार सिंखेंगे तो वह माता-पिता का आदर करेंगे। जब आत्मा संसार के कर्म का क्षय कर उच्च गुण स्थान पर आती है तभी उसे केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है । चरित्र से ही मनुष्य के जन्म मरण की मुक्ति संभव है । चरित्र को विशुद्ध बनायेंगे तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागोरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

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