नीमच । मनुष्य को अपने सांसारिक सुख की चिंता छोड़ आत्म सुख का चिंतन करना चाहिए। हम केवल सांसारिक सुख का ही चिंतन करते हैं तो यह हमारा मिथ्या दर्शन है हमें सम्यक दर्शन को अपनाना चाहिए। आत्म सुख का चिंतन मनन करना चाहिए। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि हम जिस शरीर को अपना सब कुछ समझते हैं वह सब कुछ नहीं है। जिस नाम से हमें इतना लगाव होता है वह केवल शरीर का नाम है । आत्मा का नहीं। प्रभु महावीर का जब जन्म हुआ था उनके माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा था। बाद में नाम परिवर्तन होकर वीर महावीर व क्षमण हो गया इसलिए नाम की चिंता मत करो, नाम से नहीं कर्म से आपकी पहचान बनेगी। जीव जिस गति में जाता है उसे गति में जो काम करता है वही काम उसकी पहचान बनते हैं इसलिए शरीर के नाम की चिंता मत करें बल्कि पुण्य कार्य और आत्मा को पवित्र करें तभी जीवन का कल्याण हो सकता है दुनियाकी आत्मा की चिंता करेंगे तो तीर्थंकर गोत्र तथा परिवार की आत्मा की चिंता करेंगे तो गणधर गोत्र मिलेगा। आत्मा की चिंता करें शरीर की नहीं साधार्मिक के प्रति हमारी मूल्यांकन की भावना गलत है। सार्थमिक को गरीब और कमजोर समझ लिया इसलिए हमारी भावना उसके प्रति ऐसी हो गई जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। परमात्मा की आज्ञा वह नीति पूर्वक धन कमाए तो पुण्य मिल सकता है। लेकिन लाभ में हमारा लाभ और हानि में परमात्मा की हानि यह अनुचित है। लोभ की कोई रोक नहीं होती है। बच्चों को बचपन से ही धर्म भक्ति तपस्या मंदिर के संस्कार सीखना चाहिए अंतिम आयु में यदि धर्म कर्म करेंगे तो बहुत परेशानी और मुश्किल होती है। मानव जन्म का मूल्य शुभ कर्मों से बढ़ता है। पुण्य कर्म से ही मानव का मूल्य बढ़ता है बाकी मानव का कोई मुल्य नहीं होता है।
जिस प्रकार ऊंट यदि बुढा भी होता है तो रेगिस्तान में काम आता है उसी प्रकार मानव जन्म में शरीर में यदि हमने पुण्य धर्म किया है तो वही काम आएगा अन्य कोई कर्म काम के नहीं होते है। संसारी व्यक्ति के पास धन होता है तो उसका कोई मूल्य नहीं होता। साधु के पास धन होता है तो उसका भी कोई मूल्य नहीं होता है । पुण्य कर्मों का ही मूल्य होता है। रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए और पुण्य कर्म बढ़ाना चाहिए। हमारे भाग्य में है तो कहीं नहीं जाएगा। संसार में भाग्य पुण्य के अधीन होता है इसलिए हम परिश्रम और पुरुषार्थ पुण्य के साथ करें तो हमारा भाग्य भी ज्यादा पुण्यवान बनेगा। धन के पीछे दिन रात परिश्रम कर दौड़ भाग करने की आवश्यकता नहीं है। हम परमात्मा को जितना समय शुद्ध पवित्रता के साथ देंगे तभी हमारा पुण्य बढ़ेगा और पुण्य ही भाग्य को प्रबल करता है इसलिए पुण्य के मूल्य को समझना चाहिए। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।