नीमच। ज्ञान उसी का सफल है जिसके मन में चारित्र धर्म की स्थापना हो गई है ज्ञान प्राप्ति के बाद भी जिसके दिल में चारित्र की भावना ना होती हो तो वह अज्ञानी होता है। चारित्र का दूसरा नाम संयम और दीक्षा ही है। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे।
उन्होंने संयम को परिभाषित करते हुए कहा कि यदि आपने संयम लिया है तो उसका अर्थ जगत के सभी जीवो पर प्रेम बरसाना है। यही असली साधु जीवन है। हम किसी भी शुभ कार्य के आयोजन में लाखों रुपए खर्च करते हैं अपनों को बुलाते हैं लेकिन कभी जरूरतमंद को नहीं बुलाते हैं। हमारे मन में यह भावना होना चाहिए कि जिसे जरूरत है हम उसका भी भला कर सके। यदि प्रभु को देखकर भी दीक्षा का भाव मन में आ जाए तो वह प्रभु दीक्षा कहलाती है। इसमें दूसरे की आराधना को देखकर भी आनंद आता है और मन में भावना उत्पन्न होती है कि यदि दीक्षा का भाव, दीक्षा की भावना मन में आ जाए तो अच्छा होता है प्रभु की सभी चीजों से प्रेम करना चाहिए। मानव जन्मओर जिन शासन मिलने के बाद भी यदि ज्ञान दर्शन चरित्र को आत्मसात नहीं किया तो यह जीवन बेकार होता है अनादि काल से संसार के क्रिया प्रभाव के कारण हम मोक्ष में नहीं जा सकते हैं । कई बार साक्षात परमात्मा मिलते हैं लेकिन अनादि काल के अहंकार हमें मोक्ष की ओर नहीं जाने देते हैं। मोक्ष मार्ग के ज्ञान के बावजूद के मानव मोक्ष मार्ग पर नहीं जा पा रहा है तो यह चिंतन का विषय है जहां आत्मा ने पराए को अपना माना तो वहां दुःख ही मिलेगा। संपत्ति परिवार मित्र को अपना माना तो भी वहां दुख ही मिलेगा त्याग करेंगे तो सुख मिलेगा। मानव जीवन धर्म आचरण के कारण ही सफल होता है।
संसार में एकमात्र धर्म तपस्या का मार्ग ही शांति देने वाला होता है। धर्म है वहां शांति रहती है जहां संसार है वहां दुख रहता है। ज्यादा दुख भी सुख का कारण बनता है। सिर्फ ज्ञान से ही मोक्ष नहीं मिलता है मोक्ष के साथ क्रिया का होना भी आवश्यक है ।ज्ञान क्रिया दोनों ही समन्वय स्थापित करें तभी धर्म फलिफ़त हो सकता है। संसार की क्रिया के प्रति लगाव ही असंयम का कारण है। दीक्षा संयम का मार्ग है साधु हर पल सावधान रहता है । संसारी हर पल लापरवाह रहता है। साधु यदि डंडा लेकर चले तो जीव मर भी जाए तो पाप नहीं लगता है क्योंकि वहां भाव अच्छे होते हैं। साधु जीवन के अलावा संसार में कहीं भी जाए तो वहाँ पाप कर्म बढ़ेंगे ही। संसार की अनुमोदना से संसार ही बढ़ता है। नहीं तो पाप कर्म बढ़ाते हैं पुण्य नहीं कभी-कभी हमारा कुछ लेना-देना नहीं होता है और हम संसार की अनुमोदना कर देते हैं लेकिन वह हमें दुःख ही देते हैं। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है।
श्री भीडभांजन पार्श्वनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित प्रवचन श्रृंखला में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे। धर्मसभा में जावद जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।