भगवान श्रीकृष्ण और उनके भक्तों ने भरा नरसी जी का भात भाव विभोर हुए श्रध्दालु

प्रदीप जैन September 10, 2023, 12:03 pm Technology

सिंगोली। बजरंग व्यायाम शाला परिसर में चल रही संगीतमय भक्तमाल कथा नानी बाई रो मायरो में शुक्रवार को तीसरे दिन भगवान श्रीकृष्ण और उनके भक्तों ने मिलकर नरसी जी की ओर से नानी बाई का भात भरा। अंतरऱाष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बाल व्यास पूज्य पंडित श्री कुलदीप जी शर्मा ने कथा में नरसी के भात का महत्व और उसमें योगदान करने वालों को मिलने वाले पुण्य फल के बारे में विस्तार से बताया व इसके साथ ही राधारानी के भजनों और सजीव झांकियों से परिसर में भात कार्यक्रम को जीवन्त बनाया गया। इसमें श्रोता और भक्तगण अपनी श्रद्धानुसार भात में योगदान किया !बजरंग व्यायाम शाला संचालक ओंकार लाल शर्मा ने बताया कि बुधवार 5 सितम्बर से शुरू हुई इस कथा का शुक्रवार 8 सितम्बर को समापन हुआ। कथा के लिए पूरे परिसर को भव्य तरीके से सजाया गया । व्यास पीठ को फूलों और फलों से सुशोभित किया गया। कथा में व्यास गद्दी से कृष्ण स्वरुपा पण्डित श्री कुलदीप शर्मा ने तीसरे दिन की कथा में नरसी जी के भात भरने का विस्तार से वर्णन सुनाया। बीच-बीच में उन्होंने सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भक्ति गंगा में डुबकी लगवाई। श्रोताओं, सेवकों और आयोजकों ने झूमते-गाते हुए नरसी जी के साथ जाकर उनकी बेटी का भात भरा। पण्डित कुलदीप शर्मा ने बताया कि नानी बाई को ’मायरो’ अर्थात ’भात’ जो कि मामा या नाना द्वारा कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है। नरसी के पास कुछ भी धन नहीं होने के कारण उनकी भक्ति की शक्ति से वह भात स्वयं भगवान श्री कृष्ण लाते हैं। उन्होंने बताया कि सुलोचना बाई नानी बाई की पुत्री थी। नानी बाई नरसी जी की पुत्री थी। सुलोचना बाई का विवाह जब तय हुआ था, तब नानी बाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी बहुत गरीब है। वह भात नहीं भर पाएगा। उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली लेकर पहुँचे तो उनकी बहुत बदनामी हो जाएगी, इसलिए उन्होंने बहुत लम्बी सूची भात के सामान की बनाई। उस सूची में करोड़ों रुपए का सामान लिख दिया, जिससे कि नरसी उस सूची को देखकर खुद ही न आए।पण्डित कुलदीप शर्मा ने बताया कि नरसी जी को निमंत्रण भेजा गया, साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई। परंतु नरसी जी के पास केवल एक चीज़ थी, वह थी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति। इसलिए वे उन पर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को आर्शीवाद देने वहाँ पहुँच गए। उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले भड़क गए और उनका अपमान करने लगे।

अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गए और रोते हुए अपने ईष्ट भगवान श्रीकृष्ण को याद करने लगे। नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने के लिए दौड़ पड़ी। लेकिन, भगवान श्रीकृष्ण ने नानी बाई को रोक लिया। उसे कहा कि कल वे स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिए आएंगे।​ बोलो- कृष्ण कन्हैया की जय। दूसरे दिन नानी बाई बड़ी ही उत्सुकता के साथ भगवान श्रीकृष्ण और नरसी जी का इंतज़ार करने लगी। तभी सामने देखती है कि नरसी जी संतों की टोली और भगवान कृष्ण के साथ चले आ रहे हैं। उनके पीछे ऊँटों और घोड़ों की लंबी कतार है, जिनमें सामान लदा हुआ है। दूर तक बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियाँ नज़र आ रही थी, ऐसा मायरा न अभी तक किसी ने देखा था और न ही देखेगा। उन्होंने कहा कि सभी श्रोता, भक्तगणों को इसमें अपना योगदान जरूर करना चाहिए। जिससे जो भी बन पड़े वह भात में योगदान जरूर दे। निजी जीवन में भी ऐसा करें। उन्होंने कहा कि नरसी जी का भात देखकर ससुराल वाले अपने किए पर पछताने लगे, उनके लोभ को भरने के लिए द्वारिकाधीश ने बारह घंटे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की। नानी बाई के ससुराल वाले उस सेठ को देखते ही रहे और सोचने लगे कि कौन है ये सेठ और ये क्यों नरसी जी की मदद कर रहा है। जब उनसे रहा न गया तो उन्होंने पूछा कि कृपा करके अपना परिचय दीजिए और आप क्यों नरसी जी की सहायता कर रहे हैं।​ पण्डित कुलदीप शर्मा ने बताया कि उनके इस प्रश्न के उत्तर में जो जवाब सेठ ने दिया, वही इस कथा का सम्पूर्ण सार है। इस प्रसंग का केन्द्र भी है। इस उत्तर के बाद सारे प्रश्न अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। सेठ जी का उत्तर था मैं नरसी जी का सेवक हूँ, इनका अधिकार चलता है मुझ पर। जब कभी भी ये मुझे पुकारते हैं, मैं दौड़ा चला आता हूँ इनके पास। जो ये चाहते हैं, मैं वही करता हूँ। इनके कहे कार्य को पूर्ण करना ही मेरा कर्तव्य है। बोलो-भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण की जय। उन्होंने कहा कि यह उत्तर सुनकर सभी हैरान रह गए।

किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था। बस नानी बाई ही समझती थी कि उसके पिता की भक्ति के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण उनसे बंध गए हैं। उनका दुख अब देख नहीं पा रहे हैं इसलिए मायरा भरने के लिए वे स्वयं ही आ गए हैं, इससे यही साबित होता है कि भगवान केवल अपने भक्तों के वश में होते हैं। कथा श्रवण करने के लिए बड़ी दातात में महिलाओं ने सहभागिता कि व उक्त आयोजन सभी महिला शक्ति के प्रयास एवं नगरवासियों के सहयोग से हर्ष उल्लास से आनन्द पुर्वक संपन्न हुआ।

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