आभार-
डॉ हेमलता मीना, एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास
विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) हर साल 2 फरवरी को पूरी दुनिया में आर्द्रभूमियों के बारे में वैश्विक स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए विश्व स्तर पर मनाया जाता है।यह दिन आर्द्र भूमि पर कन्वेंशन की वर्षगांठ भी है जिसे सन 1971 में एक अंतरराष्ट्रीय संधि के रूप में इरानियन शहर रामसर में अपनाया गया था। रामसर सम्मेलन 1971 में यूनेस्को द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संधि है। यह सम्मेलन 1975 में कार्रवाई में आया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संकल्प 75/317 द्वारा 30 अगस्त 2021 को 2 फरवरी को विश्व आर्द्र भूमि दिवस के रूप में स्थापित किया गया। इस दिवस के मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक है।
1700 ई से लेकर अब तक विश्व भर की लगभग 90 प्रतिशत आर्द्रभूमियों का क्षरण हुआ है।आज हालात यह है कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हम वनों की तुलना में तीन गुना अधिक तेजी से आर्द्र भूमियों को खोते जा रहे है। जबकि आर्द्र भूमियां गंभीर रूप से हमारे पारिस्थितिक तंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।आर्द्रभूमि जैव विविधता, जलवायु संतुलन और अनुकूलन के साथ मीठे पानी की उपलब्धता व वैश्विक अर्थव्यवस्थाओ में बहुत ही महत्वपूर्ण कारक हैं। रामसर कन्वेंशन का व्यापक उद्देश्य दुनिया भर में आर्द्रभूमि के नुकसान को रोकना और बुद्धिमानी से उपयोग और प्रबंधन के माध्यम से, जो शेष स्थल रह गए हैं, उनका संरक्षण करना है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, नीति निर्माण, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता है।
रामसर संधि "आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत उपयोग" के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे अत्यंत आवश्यक है कि हम आर्द्रभूमियों के बारे में राष्ट्रीय और वैश्विक जागरूकता बढ़ाएं जिससे कि आर्द्रभूमियों को हो रहे नुकसान को कम किया जा सके और आर्द्रभूमि के संरक्षण और उसके बहाली के लिए किए जा रहे प्रयासों को प्रोत्साहित किया जा सके। विश्व आर्द्रभूमि दिवस इन आर्द्रभूमियों के रूप में मौजूद महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के बारे में लोगों की समझ बढ़ाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन अत्यंत आवश्यक है ।
सन 2023 में विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम "आर्द्रभूमि की पुनः बहाली" को प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है । विश्व आर्द्रभूमि दिवस के लिए जागरूकता अभियान आर्द्रभूमि पर कन्वेंशन के सचिवालय द्वारा आयोजित किया जाता है ।आर्द्रभूमि ऊपर कन्वेंशन के अनुबंधित पक्ष 1997 से विश्व आर्द्रभूमि दिवस मना रहे हैं जब यह दिवस पहली बार स्थापित हुआ था । विश्व आर्द्रभूमि दिवस सभी के लिए खुला है। इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन, विभिन्न देशों की सरकारें ,आर्द्रभूमि चिकित्सकों से लेकर बच्चों, युवाओं ,मीडिया, समुदाय के बहुत सारे समूहों और इस संबंध में निर्णय कर्ताओ एवं सभी व्यक्तियों के लिए यह खुला है ।क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र हम सभी के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। रामसर संधि को आर्द्रभूमि पर अभिसमय के रूप में भी जाना जाता है। इसका नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है।रामसर वह आर्द्रभूमि या नम भूमि हैं, जिन्हें रामसर कन्वेंशन के तहत “अंतर्राष्ट्रीय महत्व” दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों पर रामसर सम्मेलन विशेष रूप से जलपक्षी आवास के रूप में आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसे वेटलैंड्स पर कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है।विश्व का पहला रामसर स्थल 1974 में ऑस्ट्रेलिया में स्थित कोबोर प्रायद्वीप को घोषित किया गया था।भारत का सबसे बड़ा वेटलैंड क्षेत्र सुंदरबन वेटलैंड है। सबसे अधिक रामसर साइटों वाले देश 175 के साथ यूनाइटेड किंगडम और 142 के साथ मेक्सिको हैं। सूचीबद्ध आर्द्रभूमि का सबसे बड़ा क्षेत्र बोलीविया है, जिसमें लगभग 148,000 वर्ग किलोमीटर (57,000 वर्ग मील) है। रामसर साइट सूचना सेवा (आरएसआईएस) एक खोज योग्य डेटाबेस है जो प्रत्येक रामसर साइट पर जानकारी प्रदान करता है।
भारत में स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में देश में 13,26,677 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए कुल 75 रामसर स्थलों को बनाने के लिए रामसर स्थलों की सूची में 11 और आर्द्रभूमि शामिल हो गई हैं। 11 नए स्थलों में तमिलनाडु में चार (4), ओडिशा में तीन (3), जम्मू और कश्मीर में दो (2) और मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र प्रत्येक में एक (1) शामिल हैं। इन स्थलों को नामित करने से इन आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन तथा इनके संसाधनों के कौशलपूर्ण रूप से उपयोग करने में सहायता मिलेगी। 1971 में ईरान के रामसर में रामसर संधि पत्र पर हस्ताक्षर के अनुबंध करने वाले पक्षों में से भारत भी एक है। भारत ने 1 फरवरी, 1982 को इस पर हस्ताक्षर किए। सन 1982 से 2013 के दौरान, रामसर स्थलों की सूची में कुल 26 स्थलों को जोड़ा गया, हालांकि, इस दौरान 2014 से 2022 तक, देश ने रामसर स्थलों की सूची में 49 नई आर्द्रभूमि जोड़ी हैं। वर्ष 2022 के दौरान ही कुल 28 स्थलों को रामसर स्थल घोषित किया गया है। रामसर प्रमाण पत्र में अंकित स्थल की तिथि के आधार पर वर्ष (2022) के लिए 19 स्थल और पिछले वर्ष (2021) के लिए 14 स्थल हैं। तमिलनाडु में रामसर स्थलों की अधिकतम संख्या है। यहां रामसर स्थलों की संख्या (14), इसके पश्चात उत्तर प्रदेश में रामसर के 10 स्थल हैं। 75 रामसर स्थलों में 2 1981 में, 4 स्थल 1990 में ,सन 2002 में 13 स्थल ,सन 2005 में 6 स्थल ,सन 2012 में 1 शामिल किए गए।सन 2019 में 11 ,सन 2020 में 5 व सन 2021 में 14 तथा सन 2022 में 19 स्थलों को शामिल किया गया है।अब तक भारत के कुल 75 स्थल रामसर स्थलों में शामिल किए जा चुके है।इन 75 रामसर स्थलों का कुल क्षेत्र 1326678 हेक्टेयर है।
भारत सदा से पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाता आया है। भारत की आर्द्रभूमियां भी विश्व के अन्य आर्द्र भूमि स्थलों की तरह आज संकट में है जिसके लिए हम सबको मिलकर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए महत्वपूर्ण ये आर्द्रभूमि स्थल बचे रहे और सतत विकास के वैश्विक एजेंडे के अनुसार हम सब चल पाए ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति के इन अनमोल धरोहर को देखने और उपभोग का अवतार मिल पाए।इसके लिए हमे हमारे पास उपलब्ध आर्द्र भूमियों को न सिर्फ बचाना है बल्कि मानवीय दोहन से खत्म हो गई आर्द्र भूमियों को भी पुनः स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि आर्द्र भूमियों के विलुप्त होने के खतरे से हम न सिर्फ बाहर आ पाए बल्कि हम सम्मलित प्रयासों से आर्द्र भूमियों की सिर्फ संख्या में बढ़ोतरी भी कर पाएं साथ ही उनका क्षेत्रफल भी बढ़ा सकें।