तृष्णा रुपी गड्डें को संतोष रुपी ढक्कन से ढ़के कल्याण होगा- प.पू. श्री वनिता श्री जी मा. सा

विनोद पोरवाल November 16, 2022, 5:46 pm Technology

कुकडेश्वर। समता प्रिय बंधुओं कवि अपनी मधुर गीतिका मैं बता रहा है प्रभु भजन करलों रें भाई कि जीवन दो दिन का है। वो बता रहा है कि हमारा जीवन दो दिन का है आयु बहुत थोड़ी बची है, इस पंचम काल में धर्म आराधना, सामायिक, संवर कर लिया तो मोक्ष के बहुत नजदीक पहुंचा जा सकता है। सच्चे श्रावक बनकर आगार मार्ग को छोड़कर अणगार मार्ग की और बड़े।उक्त बात हुकमेश संघ के पटधर आचार्य श्री रामेश के आज्ञानुवर्तनी शासन दीपिका प.पू. श्री वनिता श्री जी मा.सा. ने कुकड़ेश्वर स्थानक भवन में धर्म प्रभावना देते हुए फरमाया की उपासक दंशाक सूत्र में बताया गया है कि मानव को सच्चा श्रावक बनकर श्रावक पदों की उपासना करनी है, धर्म आराधना में समय लगाएं भाग्य में जो लिखा है समय से पहले मिलने वाला नहीं है इसलिए सांसारिक जीवन में से थोड़ा समय धर्म की और लगाएं गुरु भंगवत जिनवाणी के माध्यम से बता रहें कि 4 गड्ढे कभी भरने वाले नहीं होते हैं पेट का गड्ढा कभी नहीं भरता, शमशान का गड्ढा कभी नहीं भरता, समुद्र का गड्ढा कभी नहीं भरता और तृष्णा का गड्ढा कभी नहीं पड़ता है हमें तृष्णा को छोड़कर संतोष को अपनाना है संतोष रूपी ढक्कन से तृष्णा रुपी मोह माया लोभ आदि को छोड़ इस गड्ढे को संतुष्टि से भरे आज मानव स्वयं के दुखों से कम दुखी है दूसरों के सुख से दुखी है आपने बताया दूसरों के दुख से दुखी होना मानवता है इसलिए हमें दूसरों के दुख से दुखी होना दूसरों के सूख से स्वयं को दुखी नहीं बनाना तृष्णा के कारण हमारा मन धर्म आराधना में नहीं लगता है। इसलिए तृष्णा को छोड़ संतोष धारण करेंगे तो मनुष्य भव में आना सार्थक होगा और आत्मा का कल्याण होगा। उक्त अवसर पर प पू श्री निर्मंग्धा श्री जी ने बताया कि कर्मों से ही हमें सुख दुख भोगने हैं आपने बताया कि तन का साथ शरीर से है, परिजनों का साथ स्वार्थ से हैं आपने बताया कि हमारी आत्मा को शुद्ध निर्मल बनाएं क्योंकि हम जिंदा हैं वहां तक शरीर का साथ हैं और जब हम परिवारों के लिए कुछ करते हैं उन्हें कुछ देते हैं जहां तक उनका साथ होता है। इसलिए किये गये कर्मों को स्वयं भोगना पड़ता है मानव जीवन मिला अच्छे कर्म कर ले आज मानव कहता है मैं दुखी हूं दुखी होने का मुख्य कारण अपेक्षाएं हैं जब अपेक्षाएं उपेक्षा बन जाती है तो दुख की अनुभूति होती है इसलिए अपेक्षाएं ज्यादा नहीं बड़े बढ़ाएं सांसारिक मोह को छोड़ना होगा धर्म से नाता जोड़ कर अपेक्षाएं को छोड़ दें आत्मिक शांति मिलेगी मन वचन काया को स्थिर रखकर सामायिक करें जन्म मृत्यु का झंझट ही मिल जाएगा प्रभु ने तो यहां तक बताया कि 5 मिनट भी शुद्ध सच्चे मन से एकाग्र होकर धर्म आराधना कर ली तो हमारे कई कर्मों की निर्जरा होगी। हमें मनुष्य भव मिला ,धर्म आराधना, जिनवाणी, गुरु भगवन, साधु, साध्वी का सानिध्य मिल रहा है।इस पुण्य का लाभ हम गंवाएं नहीं और संसारी कार्यों में से कुछ समय धर्म आराधना में लगे तो हमारा मानव जीवन सफल होगा।

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