महासती शांता कंवर जी मा.सा की देह पंचतत्व मे विलिन, गुणानुवाद सभा आयोजित, अपार जनसमूह डोलयात्रा मे हुआ शामिल

विनोद पोरवाल November 10, 2022, 9:54 am Technology

उदयपुर। अखिल भारत वर्षीय साधुमार्गी जैन संघ के जैनाचार्य श्री रामलाल जी मा. सा.(रामेश) का चातुर्मास सेक्टर 4 मे था जो 8 नवम्बर को सम्पन्न हुआ। विगत 37 दिवस से संथारा की साधना मे लीन 85 वर्षिय महासती शांता कंवर जी मसा का 8 नवम्बर को सांय 6 बजे देवलोक गमन हो गया था। आपके पार्थिव देह को दर्शन के लिए रखा गया तथा 9 नवम्बर को प्रातः 7.30 बजे सेक्टर 4 जैन स्थानक भवन से हजारो जनसमुदाय के साथ डोल यात्रा सेक्टर 3 मोक्ष धाम हेतु रवाना हुई।

पुरे मार्ग मे जय जय नंन्दा जय जय भद्दा व राम गुरु की जय जयकार , शान्ताकंवर सती की जय जय कार के साथ डोल यात्रा मोक्षधाम की और निकली पुरे रास्ते जैन अजैन दर्शन कर श्रद्धा से नतमस्तक होते दिखे। अपार जन समूह जिसमे उदयपुर जैन समाज के साथ सभी नगरों गांवों व सभी प्रांतों से बड़ी संख्या में श्री संघ सहित अनेक जगह से श्रद्धालु डोल यात्रा मे शामिल हुए। शांन्ताकंवर की जय जयकार के नारो के बिच महासती के नश्वर देह को मुखाग्नी दी गयी।महासती की सहयोगि साध्वीयो ने जिस तरह महासती की सेवा कि वह अनुकरणीय है।निश्चय ही जैन साधु साध्वी का जीवन अद्भुत होता है।

महासती ने अपना जीवन ऐसा बनाया की उनकी मृत्यु पर महोत्सव जैसा माहोल बन गया। इसी क्रम में गुणानुवाद सभा आयोजित हुई,जैन सिद्धान्त मे व्यक्ति पुजा नही वरन गुणो की पुजा होती है। ऐसे में साध्वी के देह से आत्मा जाने के बाद उनके गुणों को याद किया जाता है।

उक्त अवसर पर गुणानुवाद सभा आयोजित हुई जिसमे आचार्यश्री रामेश, उपाध्याय राजेश मुनि, आदित्य मुनि सहित कई साधु साध्वी ने अपने अहोभाव महासती के प्रति रखे। आचार्यश्री रामेश ने कहा कि महासती द्रढ निश्चयी थी उनकी प्रतीज्ञा उनकी ताकत अपने अन्तिम मनोरथ की दिशा मे ऐसा कार्य कर गई जो सभी को प्रेरणा देता है। जिसका आत्मविश्वास गहरा हैं वही अपने निर्णय पर खरा उतरता है।अब क्या होगा का विचार आत्मविश्वासी को नहीआता है। जिस उंमग से संथारा ग्रहण किया महासती उस पर खरा उतरी। महासती शांताकंवर जी म.सा. समाधिमरण एवं मुक्ति की प्राप्ति, ,मृत्यु को महोत्सव मे परिवर्तित कर महासती अपने चरम लक्ष्य पर आरुढ हुई।

जैन परम्परा के सामान्य आचार नियमों में संलेखना या संथारा (मृत्युवरण) एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। जैन उपासकों एवं साधकों दोनों के लिए समाधिमरण पूर्वक मृत्युवरण का विधान जैन आगमों में उपलब्ध होता है। समाधिमरण में तो मनुष्य का मृत्यु पर शासन होता है। जबकि अनिच्छापूर्वक मरण में मृत्यु मनुष्य पर शासन करती है। पहले मृत्यु को पंडितमरण कहा गया है, जबकि दूसरे को बाल (अज्ञानी) मरण कहा गया है। अपने जीवन की संध्यावेला के सामने उपस्थित मृत्यु का जो स्वागत करता है और उसे स्विकारने को तत्तपर रहता है।

मृत्यु उसके लिए निरर्थक हो जाती है और वह मृत्यु से निर्भय हो जाता है। तथा अमरता की दिशा में आगे बढ जाता है। जो साधक मृत्यु से भागता है वह सच्चे अर्थ में अनासक्त जीवन जीने की कला से अनभिज्ञ है। जिसे अनासक्त मृत्यु की कला नहीं आती उसे अनासक्त जीवन की कला भी नहीं आ सकती। इसी अनासक्त मृत्यु की कला को भगवान महावीर ने संलेखना/समाधिमरण कहा है। महासती शांताकंवर जी ने जीवनपर्यन्त अपने आत्मबल पर संयमीचर्या का पालन करते हुए जिनशासन की गरिमा में अभिवृद्धि की और जीवन की संध्यावेला में सामने उपस्थित मृत्यु को शांत भाव से स्वीकार किया।

छः माह से अधिक समय रहा होगा जब आपका स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट बढती जा रही थी और आपका शरीर क्षीण होता जा रहा था, इस स्थिति में भी आप आत्मलीन होकर मानो समाधि अवस्था को प्राप्त हो रही थी, ऐसा प्रतीत होता था। अपनी अस्वस्थता से महासती पूर्ण परिचित थे इसलिए वो इस भाव मे सदैव थी कि अंतिम समय में मैं कहीं खाली हाथ नहीं चली जाऊँ। लेकिन खाली हाथ नहीं गई, पहले उपवास , फिर 36 दिवस का तिविहार संथारा , 37 वे दिवस चोवीहार संथारे के साथ मृत्यु को महोत्सव का रुप देकर आप अपने चरम लक्ष्य पर गतिशिल हो गई । 7 नवम्बर, 2022 की बात है, सेक्टर 4 ज्ञान नगर भाणावत जी के मकान पर विराजीत महासती जी के यहां आचार्य भगवन् पधारे थे इस दिन आचार्य भगवन् ने महासती से पुछा था आप कैसे है ? महासती ने कहा "आपकी कृपा है"।

फिर आचार्यश्री ने पुछा था आप साता मे है ? महासती ने कहा "आनन्द में हुं"। ऐसी पूर्ण सजग अवस्था महासती 36 दिवस तिविहार संथारा व 8 नवम्बर 37 वे दिवस चतुर्विध संघ की उपस्थिति मे चोवीहार संथारा आचार्यश्री रामेश से प्रात : 7.41 पर ग्रहण कर उसी दिन सांय 5.55 को पंडित मरण को प्राप्त हुई.... इन अवसरों पर वहाँ के दृश्य देखते ही बनते थे ।

जब तक संथारा गतिमान रहा साथी साध्वीयों ने एक पल भी महासती को अपनी आँखों से ओझल नहीं किया वरन् सभी इर्द-गिर्द ही सेवा मे रही। उनका शांत-सौम्य चेहरा मरणासन्न देह से अलग ना हो सका। उनका पार्थीव देह सेक्टर 4, अतिथि भवन के प्रांगण मे रखा गया दर्शन कर उनके चेहरे के शान्त भाव सदैव तक जनमानस को याद रहेगें।

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