शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है.
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व होता है. हर महीने में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. आज शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा. प्रदोष का दिन जब सोमवार को आता है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं और जो प्रदोष शनिवार के दिन आता है उसे शनि प्रदोष कहते हैं. प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ हो जाता है. जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ होते हैं तो उस समय को शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय शिवजी प्रसन्नचित मनोदशा में होते हैं.
आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत का मुहूर्त, पूजा विधि:-
शनि प्रदोष व्रत समय:-
कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी प्रारम्भ - नवम्बर 05, शाम 5 बजकर 6 मिनट से शुरू समाप्त- नवम्बर 06, सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर समाप्त
शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 51 मिनट से सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 1 बजकर 54 मिनट से शाम 2 बजकर 37 मिनट तक
अमृत काल- शाम 7 बजकर 12 मिनट से रात 8 बजकर 47 मिनट तक
रवि योग- रात 11 बजकर 56 मिनट से नवम्बर 06, सुबह 6 बजकर 36 मिनट तक
निशिता मुहूर्त- रात 11 बजकर 38 मिनट से नवम्बर 06, सुबह 12 बजकर 31 मिनट तक
शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि:-
शिव मंदिरों में शाम के समय प्रदोष काल में शिव मंत्र का जाप करें. शनि प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें. गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. इसके बाद ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं. शनि की आराधना के लिए सरसों के तेल का दिया पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं. एक दिया शनिदेव के मंदिर में जलाएं. व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें
शनि प्रदोष व्रत का महत्व:-
पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से लम्बी आयु का वरदान मिलता है. हालांकि प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष माना जाता है, लेकिन शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान शिव के साथ ही शनि की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ ही शनिदेव की पूजा अर्चना भी करनी चाहिए. मान्यता है कि ये व्रत रखने वाले जातकों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.