कुकड़ेश्वर। गृहस्थ में रह कर सभी कार्य कभी भी किए जा सकते और नहीं भी लेकिन धर्म कार्य हमें नियमित करना ही है। प्रार्थना प्रवचन प्रतिक्रमण में नियमित उपस्थित होना चाहिए, ज्ञानी जन धर्म करने के लिए नित्य नए मार्ग बताते हैं लेकिन हम ही धर्म कार्य में रुचि नहीं लेकिन नित्य नए बहाने ढूंढ लेते हैं। जबकि धर्म कार्य में विलंब हमारे लिए अहित का कारण होगा क्योंकि धर्म के बिना हमारा कल्याण संभव नहीं है। उक्त विचार रत्न संघ के अखिलेश नाहर ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन स्थानक भवन में प्रवचनों के दौरान कहते हुए बताया कि हमें कई जन्म मरण करने के बाद मनुष्य भव मिला, देवता भी इस भव के लिए तरसते हैं इस भव में ही सोचने समझने की शक्ति मिलती है और धर्म कार्य किए जा सकते हैं आने वाला छट्टा आरा दुःखम दुःखम है जहां दुख के अलावा कुछ और नहीं होगा जो धर्म करनी करेगा वह तिरेगा आपने कहा कि आज भौतिकता की चकाचौंध चल रही है क्षणभंगुर चीजों को हम अपना मान रहे हैं नाव और नदी एक दूसरे के पूरक है नदी में नाव है तब तक हम सुरक्षित हैं यदि नाव में छेद हो गया तो हमें डूबना ही है इसी प्रकार हमने संसार के पीछे धर्म को छोड़ दिया तो हमारा डूबना निश्चित है हमें ममत्व भाव का त्याग करना होगा।