धर्म क्या है इसके स्वरूप को पहचाने-पपू श्री वनिता श्री जी म. सा.

मनोज खाबिया June 27, 2022, 2:12 pm Technology

कुकडेश्वर। धर्म क्या है इसके सच्चे स्वरूप को पहचानने की आवश्यकता है आज हम देखते हैं अधिकांश लोगों की सोच है गरीबों की सहायता करने, दिव्यांग को सहयोग देने,दान,भोजन देने को ही हम धर्म मानते हैं। लेकिन यह तो हमारी मानवता, दयालु भाव है, धर्म के सच्चे स्वरूप की पहचान नहीं है। इसके लिए आत्म चिंतन की आवश्यकता है क्योंकि आत्मा का स्वरूप ही धर्म है उक्त बात हुकमेश संघ पटधर आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी मा. सा. की आज्ञानुवती शासन दीपिका पूज्या श्री वनिता श्री जी म.सा.ने कुकडेश्वर स्थानक भवन में धर्म सभा के बीच फरमाते हुए कहा कि धर्म आज दो प्रकार से हो रहे हैं बाहरी वआंतरिक व्यवहार से किया जाता है। लेकिन सच्चा धर्म आंतरिक होना चाहिए धर्म मिश्री की तरह हैं जिस प्रकार मिक्षी को पानी में डालते हैं तो वह धीरे-धीरे गलती है और मिठास देती है उसी प्रकार धर्म को आचरण में लेने के बाद धीरे-धीरे कर्म की निर्जरा होती है और मानव के जीवन में निखार आता है। कर्मों की निर्जरा होने से पुण्य का बंद होता है पुण्य बंद होने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है ।आज हम धर्म को बाहरी रुप से कर रहे हैं धर्म करते हुए अगर हमें कुछ नुकसान हो जाए तो सारा ठीकरा धर्म के नाम डाल देते और कहने लगते कि हम इतना धर्म कर रहे हैं तो भी भगवान ने हमारा साथ नहीं दिया लेकिन धर्म आत्मा कल्याण के लिए होता है और धर्म को आंतरिक भाव से करेंगे तो अपने कर्म कम होकर पुण्य का मार्ग खुलेगा एवं पुण्य उदय में आएंगे तो जिवन में सुख वैभव विलासिता तो पुण्य के कारण मिलेंगी । भगवान व धर्म कभी किसी का अच्छा और बुरा नहीं करता है उनके यहां समानता रहती है यह तो अपने स्वयं के ऊपर निर्भर हैं हम धर्म को किस प्रकार से कर रहे हैं। धर्म करने के लिए भाव में दृढ़ता होनी चाहिए धर्म के स्वरूप व अपने मन के स्वरूप को बदलने के लिए धर्म के साथ-साथ शास्त्र वाचन भी जरूरी है जिससे अपनी आत्मा का अवलोकन होकर अपने भाव शुद्ध होते हैं भाव शुद्ध होने पर ही सच्चे धर्म का स्वरूप सामने आता है। उक्त अवसर पर श्रीनिष्ठा श्री जी ने फरमाया कि मानव को भावना ऊंची रखना चाहिए सरलता व सहजता से हमें सब कुछ मिल जाए इसके लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता है हमें परदर्शी नहीं बन कर स्वदर्शी बनना चाहिए आपने बताएं परदर्शी जो दूसरों को देखने वाला होता है दूसरों के सुख,वैभव विलासिता देखकर अपने भाव में उतार-चढ़ाव लाता है। स्वदर्शी आत्मा का अवलोकन करता है। हमें दृढ़ता से धर्म पर चलने की आवश्यक है।आपसे ने बताया कि मानव को बाहरी सुख को छोड़ कर जो मिला है संतोष करने से सुख मिलता रहेगा संतोषी ही मोक्ष मार्ग के लिए अपनी राह खुद तय कर सकता है संसार में रहकर भी ऊपर उठने का एकमात्र उपाय संतोष है।

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