एस्ट्राजेनेका या फाइजर की वैक्सीन के पहले डोज की तुलना में कोरोना वायरस के संक्रमण से ब्लड क्लॉट होने का ज्यादा खतरा है। ये खुलासा ब्रिटेन में किए गए रिसर्च से हुआ है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक एस्ट्राजेनेका का पहला डोज लगवाने वाले 1 करोड़ लोगों में से 66 ब्लड क्लॉटिंग से प्रभावित होंगे। रिसर्च में एस्ट्राजेनेका या फाइजर की वैक्सीन का पहला डोज लगवाने वाले दो करोड़ 90 लाख से ज्यादा लोगों के नतीजों को इस्तेमाल किया गया।
रिसर्च से हालांकि दोनों वैक्सीन में से कोई एक डोज लगवाने के बाद ब्लड क्लॉट होने का ज्यादा खतरे का खुलासा हुआ, लेकिन ये जोखिम उन लोगों में और बढ़ गया जो कोरोना वायरस की जांच में पॉजिटिव पाए गए। आंकड़ों की तुलना 12,614 घटनाओं से की गई जिसको एक करोड़ से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव लोगों में दर्ज किया गया था। शोधकर्ता ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी टीम से पूरी तरह स्वतंत्र हैं जिन्होंने एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने के लिए काम किया था।
ब्लड क्लॉट की आशंका को देखते हुए कई देशों में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन के इस्तेमाल को रोकने का मामला सामने आ चुका है। मगर नतीजे एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का इस्तेमाल जारी रखने के निर्णय को मजबूती देते हुए लगते हैं। शोधकर्ताओं ने माना कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों का पहला डोज इस्तेमाल करने वालों की तुलना में करीब 9 गुना ज्यादा प्लेटलेट्स लेवल कम हो सकता है। रिसर्च में स्ट्रोक की समीक्षा से पता चला कि फाइजर की वैक्सीन का पहले डोज के बाद की तुलना में वायरस का स्ट्रोक के लिए ज्यादा योगदान है।
हालांकि रिसर्च से ये स्थापित नहीं हुआ कि क्या ब्लड क्लॉट्स के चिह्नित मामले निश्चित रूप से वैक्सीन के कारण थे, लेकिन नियामकों ने संभावित संबंध की पहचान की है। जुलाई में प्रकाशित डेटा से पता चला था कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का दूसरा डोज लगवाने के बाद मुसीबत का जोखिम नहीं बढ़ता है।