गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी GST को लागू किए हुए करीब चार साल हो चुके हैं. जीएसटी काउंसिल की दर्जनों दफा बैठक हो चुकी है. इसके बावजूद प्रोडक्ट और सर्विस के वर्गीकरण को लेकर अभी तक विवाद जारी है. व्यापारी और सरकार कानून की व्याख्या अपने-अपने तरीके से करती है. यही वजह है कि विवाद घटने की जगह बढ़ते जा रहे हैं.
Dabur Odomos का इस्तेमाल सालों से किया जा रहा है. अभी इस पर 18 फीसदी का जीएसटी लगता है. इसका इस्तेमाल मच्छर भगाने के रूप में किया जाता है. अब कंपनी ने अपने वर्गीकरण (Classification) पर सवाल उठाया है और खुद को मेडिकल प्रोडक्ट के रूप मे घोषित करने की मांग की है जिस पर 12 फीसदी का टैक्स लगता है. हालांकि उत्तर प्रदेश अथॉरिटी फॉर अडवांस रूलिंग (AAR) ने इस मांग को खारिज कर दिया है. डाबर के इस प्रोडक्ट पर 18 फीसदी का टैक्स लगता रहेगा
प्रोडक्ट क्लासिफिकेशन को लेकर विवाद:-
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा की एक और कंपनी ने UP AAR के सामने क्लासिफिकेशन पर सवाल उठाया. कंपनी ने कहा कि वह ब्रेड चीज बनाती है इसलिए उससे 12 फीसदी टैक्स वसूला जाए. उसकी अपील उत्तर प्रदेश अथॉरिटी फॉर अडवांस रूलिंग की तरफ से एक्सेप्ट नहीं किया गया. एक तीसरा मामला साइकिल लॉक का है. इसमें सवाल ये है कि क्या इसे साइकिल का एक्सेसरीज माना जाए या फिर इसे महज एक लॉक माना जाए. प्रोडक्ट और सर्विस क्लासिफिकेशन के लिए 400 पेज का HSN कोड बुक है जिसमें 19 हजार टैरिफ एंट्री है. इसके बावजूद यह समस्या जारी है.
कम टैक्स स्लैब ही इसका हल:-
इस तरह के दर्जनों मामले सामने आए हैं जहां सरकार और बिजनेसमैन अलग-अलग टैक्स रेट का दावा करते हैं.
वर्तमान सरकार जीएसटी के सिंगल रेट को सिरे से नकार रही है हालांकि कम टैक्स स्लैब के पक्ष में है जरूर है, लेकिन यह एक लॉन्ग टर्म प्लान है. KPMG के हरप्रीत सिंह का कहना है कि 49 देशों में जीएसटी का सिंगल टैक्स रेट है. 28 देशों में दो टैक्स रेट हैं. ऐसे में प्रोडक्ट या सर्विस के क्लासिफिकेशन की समस्या को कम करने का एकमात्र रास्ता है कि सरकार टैक्स स्लैब को कम से कम करे. फिलहाल इसको लेकर जीएसटी काउंसिल के पास कोई प्लान नहीं है.