जीवो पर दया स्वर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार-वैराग्य सागर जी मसा, अहंकार के बिना की गई जीव दया पुण्य दायक होती है - सुप्रभ सागर जी मसा, अष्टानिका महापर्व गणधर वलय विधान प्रवाहित

Neemuch headlines November 12, 2024, 3:32 pm Technology

नीमच । पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीव पर दया करना मनुष्य का कर्तव्य है। जीव दया का पुण्य फल हमारे आत्म कल्याण का मार्ग प्रस्तुत करता है। जीव दया बिना सभी धार्मिक कार्य अधूरे रहते हैं। जीव दया मोक्ष का मार्ग दिखाती है। जीवों पर दया करना स्वर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार होता है। यह बात मुनि वैराग्य सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में अष्टानिका महापर्व गणधर वलय विधान कार्यक्रम मेंआयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि जीव दया हमारे आने वाले कष्टों से मुक्ति दिलाती है। दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय जैन विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन जैन विनायका ने बताया कि आचार्य वंदना आरती के साथ हुई। सुबह 6:45 बजे मंगलाष्टक विधान से प्रारंभ हुआ । विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी भैया जी भावेश जैन ने गणधर वलय विधान करवाया। और संगीतकार प्रथम जैन दमोह ने विभिन्न भजन प्रस्तुत किये। गंणधर वलय विधान में समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। मुनि सुप्रभ सागर जी मसा ने कहा कि तीर्थंकरों से जिनवाणी गणधर को मिलती है और गणधर धर्म शास्त्रों की रचना करते हैं और धर्म शास्त्रों से हमें जीवन चरित्र जीवन जीने की कला सीखने को मिलती है। गणधर के कारण ही धर्म के संस्कार आने वाली नई पीढ़ी को मिलते हैं। धर्म के संस्कार सुरक्षित रहते हैं तो समाज सुरक्षित रहता है। सम्यक दर्शन की प्राप्ति प्रत्येक जीव का लक्ष्य होता है।

सम्यक दर्शन पुण्य व भाग्य से मिलता है। कर्मों की स्थिति अनंत अर्बो वर्षों तक साथ रहती है। इसलिए सदैव पुण्य कर्म करते रहना चाहिए पाप कर्म से सदैव बचना चाहिए। दया करने के बाद कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। नहीं तो उसका फल नहीं मिलता है। अनुकंपा में अहंकार नहीं आता है। प्राणी मात्र के कष्ट को दूर करना ही सच्ची जीव दया है। मन में किसी के भी प्रति भेदभाव नहीं रखना चाहिए। माया कष्टों का कारण है। माया और क्रोध के कारण ही मनुष्य को पशु योनि में जन्म लेना पड़ता है इसलिए सदैव क्रोध से बचना चाहिए और विशुद्ध जीवन जीना चाहिए सम्यक दर्शन जहां होता है वहां पाप नहीं होता है। उनके साथ की गई जीव दया हमें राजा का पद दिला सकती है। सम्यक दर्शन वाला व्यक्ति सदैव जीव दया कर दूसरों के जीवन की रक्षा करने का प्रयास करता है। रास्ते में हमें कोई भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति नजर आए तो हम मोबाइल से वीडियो बनाने के बजाय पहले उसकी जीवन की रक्षा के लिए उसे प्राथमिक उपचार के लिए शीघ्र से शीघ्र उसे अस्पताल पहुंचाने का कार्य करें यह सबसे बड़ी जीव दया है।

इस जीव दया फल निरंतर पुण्य मिलता रहता है। जिसके मन में संवेदना नहीं होती उसे व्यक्ति का कभी भी पुण्य फल मजबूत नहीं होता है। जीव दया धर्म का संस्कार सिखार्ती है और जीव दया से जीवन में पुण्य फल मिलता है।

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