हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर गणगौर पूजा की जाती है। सुहागिन महिलाओं के लिए यह पूजा विशेष महत्त्व रखती है। इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती है। यह व्रत पति को बिना बताये किया जाता है। कुंवारी कन्यायें भी इस व्रत जी करती है। चलिए जानते है
गणगौर पूजा कब है?
और क्या हैं गणगौर पूजा का महत्त्व, पूजा विधि और अन्य कुछ ख़ास बातें - कब है
गणगौर पूजा?:-
वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 10 अप्रैल (बुधवार) शाम 5 बजकर 32 मिनट से हो रही है। इसका समापन 11 अप्रैल (गुरूवार) दोपहर 3 बजकर 3 मिनट पर हो जाएगा। शुभ मुहूर्त 11 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 29 मिनट से 08 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।
गणगौर पूजा महत्व:-
गण और गौर, दो शब्दों से मिलकर बना है गणगौर। गण का अर्थ शिव से और गौर का संबंध मां गौरी से है। गणगौर के दिन शिव-पार्वती की पूजा करने का विधान है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा विधि-विधान से करने पर महिलाओं को सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन और कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, गणगौर पूजा का उपवास पति को बिना बताए किये जाने का रिवाज है। यह व्रत सुख-समृद्धि के लिए होता है।
गणगौर पूजा विधि:-
गणगौर व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। अब स्वच्छ कपड़े पहनकर सुहागिन महिलाएं सोलह शृंगार अवश्य करें। इसके बाद मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमाएं तैयार करें। इसके पश्चात एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर दोनों प्रतिमाओं को स्थापित कर देवें। अब मां गौरी को सोलह शृंगार की चीजें अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें और शिव-पार्वती की आरती करें। शिव-पार्वती का प्रिय भोग अर्पित करें।