आज यानी 22 मार्च को फाल्गुन माह का दूसरा और आखिरी प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस समय फाल्गुन माह चल रहा है और प्रदोष व्रत शिव जी को समर्पित है। मान्यता है कि जो भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं उन्हें भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से जातक को विशेष लाभ मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
इस दिन भोलेनाथ की पूजा करने से जीवन की सभी परेशानियां भी खत्म होती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं प्रदोष व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में...
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त:-
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 मार्च को सुबह 8 बजकर 21 मिनट पर हो रही है।
इस तिथि का समापन 23 मार्च को सुबह 6 बजकर 11 मिनट पर होगा।
प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय होती है, इसलिए मार्च का
दूसरा प्रदोष व्रत 22 मार्च 2024 को रखा जाएगा।
इस दिन शुक्रवार होने से इसे शुक्र प्रदोष प्रत कहा जाएगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि:-
शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद मंदिर में पूजा करें। भोलेनाथ और माता पार्वती को तिलक लगाएं। फिर उन्हें फूल व फल अर्पित करें। इसके बाद दिनभर फलाहार करें। फिर शाम के समय प्रदोष काल में स्नान आदि करने के बाद मंदिर में चौकी बिछाकर शिव परिवार की तस्वीर स्थापित करें। शिव जी और गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं और पार्वती जी को सिंदूर का तिलक लगाएं। फिर शिव जी को बेल पत्र और धतूरा अर्पित करें। इसके बाद घी की दीपक जलाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं। फिर शिव चालीसा का पाठ करें और भोलेनाथ से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे। प्रदोष व्रत का महत्व शुक्र प्रदोष व्रत को बहुत ही शुभ फरदाई माना जाता है। इस दिन शिव जी और माता पार्वती की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में किया जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में भोलेनाथ प्रसन्न मुद्रा में होते हैं। ऐसे में इस दौरान उनकी अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।