कैसे हुई वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना? जानें क्या थी रावण की गलती पढ़े पूरी कथा

Neemuch headlines March 8, 2024, 3:29 pm Technology

हिंदी पंचांग के अनुसार, 15 तिथियों के बाद श्रावण माह प्रारंभ होने वाला है। इस माह में भगवान शिव की पूजा की जाती है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली का आगमन होता है। सावन में शिव की पूजा और अराधना से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।

वैसे तो भगवान शिव की पूजा प्रत्येक सोमवार को किया जाता है, लेकिन सावन में शिव पूजा को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। देश के प्रत्येक कोने में भगवान शिव के शिवलिंग हैं, लेकिन 12 ज्योतिर्लिंग बहुत ही खास हैं।

इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आज हम वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा:- इस ज्योतिर्लिंग का संबंध रावण से है। रावण भगवान शिव का परम भक्त था। एक बार वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या कर रहा था। उसने एक-एक करके अपने 9 सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया। जब वह अपना 10 वां सिर काट करके चढ़ाने जा रहा था, तभी शिव जी प्रकट हो गए।

शिव जी ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए रावण से वर मांगने के लिए कहा। रावण चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चलकर रहें, इसीलिए उसने वरदान में कामना लिंग को मांगा। भगवान शिव मनोकामना पूरी करने की बात मान गए, परंतु उन्होंने एक शर्त भी रख दी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को कहीं रास्ते में रख दिया, तो तुम उसे दोबारा उठा नहीं पाओगे। शिव जी की इस बात को सुनकर सभी देवी-देवता चिंतित हो गए।

सभी इस समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंच गए। भगवान विष्णु ने इस समस्या के समाधान के लिए एक लीला रची। उन्होंने वरुण देव को आचमन करने रावण के पेट में जाने का आदेश दिया। इस वजह से रावण को देवघर के पास लघुशंका लग गई। रावण को समझ नहीं आया क्या करे, तभी उसे बैजू नाम का ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजू को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने चला गया।

वरुण देव की वजह से रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा। बैजू रूप में भगवान विष्णु ने मौके का फायदा उठाते हुए शिवलिंग वहीं रख दिया। वह शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। इस वजह से इस जगह का नाम बैजनाथ धाम पड़ गया। हालांकि इसे रावणेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है।

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