नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर की कहानी, औरंगजेब के हमले के बाद कब और किसने किया इसका पुनर्निर्माण

Neemuch headlines March 8, 2024, 3:24 pm Technology

 त्र्यंबकेश्वर मंदिर का क्या है महत्व:-

यह महादेव मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. हिंदू मान्यताओं में त्र्यंबकेश्वर मंदिर को अत्यंत पवित्र स्थलों में से गिना जाता है. यह भगवान शिव के भक्तों के लिए बड़ा तीर्थस्थल है. यह पौराणिक मंदिर महाराष्ट्र में नासिक एयरपोर्ट से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस गांव का नाम त्र्यंबक है. यहीं पर गोदावरी के रूप में गंगा के धरती पर आने की कहानी भी कही जाती रही है. यहां भगवान को त्रय यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार कहा जाता है.

कब बना नासिक का त्र्यंबकेश्वर मंदिर ?:-

मुगलों के हमले के बाद इस मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवाओं को दिया जाता है. तीसरे पेशवा के तौर पर विख्यात बालाजी यानी श्रीमंत नानासाहेब पेशवा ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था. पौराणिक तौर पर यह भी कहा जाता है कि सोने और कीमती रत्नों से बने लिंग के ऊपर मुकुट महाभारत के पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था. कहा जाता है सत्रहवी शताब्दी में जब इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा था तब इस कार्य में 16 लाख रुपये खर्च हुए थे. त्र्यंबक को गौतम ऋषि की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है. स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है यह मंदिर काले पत्थरों पर नक्काशी और अपनी भव्यता के लिए त्र्यंबकेश्वर मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है. पूरा मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है.

चौकोर मंडप और बड़े दरबाजे मंदिर की शान प्रतीत होते हैं. मंदिर के अंदर स्वर्ण कलश है और शिवलिंग के पास हीरों और अन्य कीमती रत्नों से जड़े मुकुट रखे हैं. ये सभी पौराणिक महत्व के हैं. औरंगजेब ने त्र्यंबकेश्वर मंदिर पर किया था हमला मुगलकाल के शासकों ने भारत के अंदर कई शहरों में हिंदू देवी देवताओं के तीर्थस्थलों को ध्वस्त करवा दिया था उनमें एक नासिक का त्र्यंबकेश्वर मंदिर भी था.

इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में इसका जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है सन् 1690 में मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अंदर शिवलिंग को तोड़ दिया था. मंदिर को भी काफी क्षति पहुंचाई थी. और इसके ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया था. यहां तक कि औरंगजेब ने नासिक का नया नाम भी बदल दिया था. लेकिन 1751 में मराठों का फिर से नासिक पर आधिपत्य हो गया, तब इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया.

Related Post