संयम जीवन बिना सच्चा सुख नहीं मिलता है आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा प्रवाहित

neemuch headlines September 30, 2023, 8:23 pm Technology

नीमच । संयम जीवन बिना सच्चा सुख नहीं मिलता है । संसार में सबसे सुखी मार्ग संयम जीवन का होता है। उसका सही विधिवत पालन करना चाहिए संत आहार विहार नियम विधिवत पालन करते हैं तभी आत्म कल्याण होता है संत जीवन में संयम पालन 24 घंटे करने से उनके जीवन में आनंद रहता है। दीक्षा के बाद आज्ञा ही संत के लिए प्रथम और आवश्यक होती हैं । गुरु आज्ञा के बिना धर्म का महत्व नहीं होता है । माता-पिता की सेवा के बिना विद्वान भी बेकार है।

व्यक्ति चाहे कितना ही विद्वान हो जाए लेकिन फिर भी उसे गुरु आज्ञा में ही आगे बढ़ना चाहिए तभी उसका कल्याण हो सकता है। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चाहे कितनी ही तपस्या कर ले कितनी ही सफलता प्राप्त कर ले गुरु आज्ञा बिना उसका पतन हो जाता है। संत को अनेक बार सच्चाई के परिणाम का ज्ञान होने के बाद भी मौन रहना पड़ता है क्योंकि सांसारिक व्यक्ति अति उत्साहित रहता है और वह सत्य के ज्ञान की परीक्षा में असफल हो जाता है और पाप कर बैठता है इसलिए संत को अनेक समय पर मौन रहना पड़ता है शिष्य चाहे कितना ही विद्वान और ज्ञानी क्यों ना हो गुरु आज्ञा उसके लिए सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। तभी उसका कल्याण हो सकता है। एक सफल संत को मृदु भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

गुरु शिष्य के प्रति क्रोध नहीं करें क्लेश भी नहीं करें तभी गुरु का जीवन सफल हो सकता है। विपरीत परिस्थिति में भी संयम रखना चाहिए क्रोध नहीं करना चाहिए । संयमी शब्दों का उपयोग करना चाहिए नहीं तो मौन रहना चाहिए। हल्के और अपमानजनक शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। संत मन में दया भाव रखें लेकिन ऐसी दया नहीं करें जिससे परिणाम में किसी की बुराई हो पाप कर्मों की निर्जरा के लिए संयम जीवन के नियमों का विधिवत पालन करना चाहिए। संयम चरित्र के जीवन का आनंद आता है नहीं तो दुख आएगा। संत का सांसारिक पदार्थों में लोभ लालच नहीं होना चाहिए। गुरु आज्ञा सर्वोपरि होना चाहिए । अन्यथा सब कुछ व्यर्थ होता है। आचार्य श्री ने प्रतिक्रमण के नियम का विधिवत पालन करने से जीवन में आनंद आने के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आगम ज्ञान के साथ सतगुरु को क्रिया पर भी ध्यान देना चाहिए ज्ञान के साथ क्रिया आवश्यक होती है। गौतम स्वामी ने भी क्रिया को नहीं छोड़ा था क्रिया बिना ज्ञान अधूरा होता है।

एक साध्वी कठिन तपस्या के बावजूद परमात्मा की आज्ञा और गुरु आज्ञा नियम का उल्लंघन किया और एक स्त्री को पांच पुरुषों द्वारा सेवा करते हुए देख लिया और मन बदल गया तब उसने प्रार्थना की यदि मेरी तपस्या सही हो तो अगले जन्म में मुझे भी पांच पुरुषों की सेवा में रहने वाली स्त्री का जन्म मिले तपस्या का फल सफल हुआ और अगले जन्म में उस साध्वी ने द्रोपदी के रूप में जन्म लिया। कभी-कभी तपस्या करते समय नियम का पालन नहीं करने पर तपस्या का परिणाम गलत दिशा की ओर विमुख हो जाता है इसलिए नियम का पालन आवश्यक होता है। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

Related Post