ब्रह्मचर्य को पालन करने वाला उदारता शूरवीरता धीरता और सुन्दता को प्राप्त होता है मुनिश्री सुप्रभ सागर

प्रदीप जैन। September 29, 2023, 7:31 am Technology

30 सितंबर को क्षमावाणी पर्व मनाया जाएगा

सिंगोली। नगर में पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर दशलक्षण महापर्व के दस वे दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर 28 सितंबर गुरुवार को प्रातः काल श्री जी का अभिषेक व शांतिधारा हुई मुलनायक पार्श्वनाथ भगवान पर प्रथम महा शान्तिधारा करने का सौभाग्य प्रकाश चन्द्र कपिल कुमार अरविन्द कुमार ताथेडिया परिवार को प्राप्त हुआ वही नेमिनाथ भगवान पर शान्तिधारा करने का सौभाग्य नन्दलाल बन्टु कुमार प्रकाश चन्द्र बगड़ा परिवार को मिला वही बाहुबली भगवान पर शान्तिधारा करने का सौभाग्य कैलाशचन्द्र निलेश कुमार मनोज कुमार साकुण्या परिवार को मिला सभी श्री जी के ऊपर शान्तिधारा करने का सौभाग्य समाज के अगल अगल परिवारों को मिला उसके बाद मुनिश्री ससंघ के सानिध्य मे संगीतमय पुजन देव शास्त्र गुरु सोलहकारण दशलक्षण उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म कि पूजन हुई उसके बाद वासूपुज्य भगवान के मोक्ष कल्याण महोत्सव पर निर्वाण लड्डू चढ़ाया गया वही तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु,काजल बागड़िया कु,श्रुति धानोत्या ने किया उसके पश्चात मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रम्ह अर्थात् आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य कहा जाता है।

बाह्य में स्त्री प्रसंग का त्याग करना ब्रह्मचर्य कहा गया है। पानी जब तक बन्धन में रहता है तबतक वह नीचे की ओर ही जाता है, उसकी शक्ति भी व्यर्थ चली जाती है, उसे बांध के द्वारा बांधने पर वह ऊपर की ओर उठता है तथा उसकी शक्ति भी विद्युत् बनाने में काम आती है। उसी प्रकार आत्मा की अनन्त शक्ति, अब्रह्म के कारण नीचे की ओर बह रही है, उसे ब्रह्मचर्य के बंधन से बांधकर ऊर्ध्वगामी कर कर्मों को क्षय करने की शान्ति प्राप्तकर मोक्ष सुख प्राप्ति में लगा दो। दुनिया में सब वस्तुओं पर कर लगता है, परन्तु भोजन और भोग पर नहीं है, इसलिए दोनों पर कोई नियंत्रण नहीं है। पशु-पक्षी ऋतुकाल में ही भोग भोगते है, पर मनुष्य के लिए कोई काल नहीं है इसीलिए उसके हेतु ब्रह्मचर्य व्रत कहा है। सभी पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते है, अतः गृहस्थ जीवन में सदार संतोष व्रत कहा गया अर्थात् अपनी धर्म पत्नी या पति में ही संतुष्ट होना। शील को मोक्ष का सोपान कहा है। ब्रह्मचर्य को पालन करने वाला उदारता शूरवीरता, धीरता और सुन्दता को प्राप्त होता है। अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले भीष्म पितामह को जीतने का सामर्थ अर्जुन जैसे धनुर्धर में भी नहीं था । उसे भी उन्हें जीतने हेतु हाल का प्रयोग करना पड़ा। ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के शरीर मे अपार शक्ति थी, इसलिए उन्होंने अपने जीवन में नौ हजार से ऊपर उपवास किए जिस विद्यार्थी को अपने बुद्धि को तेज व एकाग्र करना है, उसे शिक्षण काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।वही मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा किभूमिगत जल शुद्ध होता है, पतिव्रता नारी शुद्ध होती है, धर्मपरायण राजा शुद्ध होता है और ब्रह्मचारी सदा शुद्ध माना जाता है। है। ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करने वाला देवों के द्वारा भी पूज्य होता है। सेठ सुदर्शन ने एक रानी के प्रणय निवेदन को ठुकरा दिया और मुनि दीक्षा लेकर अपनी आत्मा रमण किया। वर्त‌मान में ब्रह्मचर्ष की रक्षा करना कठिनतम कर्यो में से एक है। उसके लिए अपने बच्चों को प्रारंभ से ही शिक्षा और संस्कार देने की आवश्यकता है। जो ब्रह्मचर्य के अनुशासन में रहता है, उसे आत्मानुशासन की प्राप्ति होती हैं। समाज के वरिष्ठ जनो ने बताया की क्षमावाणी पर्व 30 सितंबर शनिवार को मनाई जाएगी जिसमे श्रीजी कि भव्य रथ यात्रा निकाली जाएगी इस अवसर पर बडी संख्या में समाजजन उपस्थित रहेंगे।

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