प्रातः काल हुआ मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज के केशलोच
सिगोली । जिस व्यक्ति के पास क्या ग्रहण करना ओर क्या नही इसका ज्ञान है, वह विवेकी जीव है। और जिसके पास हेयोपादेय का ज्ञान है, वही जागृतकहलाता है संसारी प्राणी के पास ज्ञान होने के बाद भी यदि विवेक से काम न करे, तो वह अनपढ़ से भी गया बीता होता है। पृथ्वी पर मनुष्य ही सबसे ज्ञानवान है। पशुओं में भी ज्ञान होता है, पर उनके पास विवेक नहीं होता है,मनुष्य के पास विवेक रूपी विशेषता रहती है। विवेक बिना क्रिया का महत्व कम होता है और उसका फल भी प्राप्त नहीं होता है। विवेकहीन व्यक्ति को कोई भी अपने साथ नही रखता है।
यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दिक्षित मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने २६ जुलाई बुधवार को प्रातः काल कही उन्होंने बताया कि आज की युवा पीढ़ी ज्ञानार्जन तो कर रही है, पर विवेक का उपयोग नहीं कर रही है। उसे न खाने का विवेक रहता है, न कपडे पहनने का और न उठने बैठने का विवेक है और विवेक के अभाव में ही वे संस्कृतिक को भी अस्वीकार करते जा रहे है। विवेक के अभाव में धर्म को भूलकर पाश्चात संस्कृति को अपनाते जा रहे है। ज्ञान के साथ विवेक रहे तो वह ज्ञान जीवन में चमत्कार घटित कर सकता है। विवेक के द्वारा ही ज्ञान का प्रयोगसफलता दिलाता है। विवेकवान् व्यक्ति कभी अज्ञानी से नही भिडता है। क्योंकि वह जानता है कि इससे भिड़ना स्वयं के लिए ही हानिप्रद है। दिगम्बर जैन मुनि अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हैं, उनमें एक केशलोच मूलगुण होता है। अपरिग्रह मूलगुण होने से अपने साथ रूपया पैस-औजार आदि नहीं रखते है, इसलिए जैन साधु दो तीन चार माह में अपने हाथो से केश को उखाड़ते है। शरीर के प्रति निस्पृहता और निराण्डितपने का प्रतीक होकर केशलोच मूलगुण है। यहां विराजित मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज का बुधवार को प्रातः काल केशलोच सम्पन्न हुआ इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।