Latest News

आज नवरात्रि के दूसरे दिन इस तरह करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें मंत्र और पूजा विधि

Neemuch headlines March 23, 2023, 7:09 am Technology

नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित माना जाता है. माता के इस स्‍वरूप की पूजा करने से आत्‍मबल बढ़ता है. व्‍यक्ति के अंदर तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि गुण प्रबल होते हैं.

आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित माना जाता है. मां मां ब्रह्माचारिणी की शक्तियों को उनके नाम से ही समझा जा सकता है. ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली. माता के इस स्‍वरूप की पूजा करने से आत्‍मबल बढ़ता है. व्‍यक्ति के अंदर तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि गुण प्रबल होते हैं. ऐसा व्‍यक्ति मुश्किल समय में भी मार्ग से नहीं भटकता. आइए आपको बताते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन कैसे करनी चाहिए माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और क्‍या हैं

मंत्र. ऐसा है मां का स्‍वरूप:-

कहा जाता है कि माता पार्वती के हजारों साल कठोर तप करने के बाद उनके तपेश्‍वरी स्‍वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं. वे इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं और सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करती हैं. माता के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है. मां ब्रह्मचारिणी पवित्रता और शांति का प्रतीक मानी जाती हैं.

ऐसे करें पूजन:-

सबसे पहले भगवान गणेश को याद करें और कलश पूजन करें. इसके बाद माता के ब्रह्मचारिणी स्‍वरूप को याद करें और इसके बाद माता का पूजन करें. मां को पंचामृत से स्‍नान कराएं. रोली, अक्षत, चंदन, पुष्‍प, लौंग का जोड़ा, धूप और दीप आदि अर्पित करें. माता को सफेद चीजें प्रिय हैं, ऐसे में मां को मिश्री, दूध, खीर, खोए की बर्फी आदि का भोग लगाएं. इसके बाद मंत्र, चालीसा आदि जो भी पूजन आप नवरात्रि के दौरान कर रहे हों, उसे करें.

मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

ॐ दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू,देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः

ये है मां ब्रह्मचारिणी की कथा:-

शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने एक हजार साल तक तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. ठंड,गर्मी, बरसात हर ऋतु को सहन किया लेकिन किसी भी हाल में अपने तप को भंग नहीं होने दिया. इस बीच वो टूटे हुए बिल्व पत्र का सेवन करती थीं. जब उनकी कठिन तपस्या से भी भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए, तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और हजारों वर्ष तक निर्जल और निराहार तप किया. माता के नियम, संयम और कठोर तप से आखिरकार महादेव प्रसन्‍न हुए और मातारानी को पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार किया. माता पार्वती के इस तपस्विनी स्‍वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया, जो मनुष्‍य को ये सीख देता है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए व्‍यक्ति को अडिग रहना चाहिए और कठिन समय में भी उसका मन विचलित नहीं होना चाहिए, तभी उसे सफलता प्राप्‍त होती है.

Related Post