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शीतला अष्टमी की कथा और नियम जानिए क्यों नही बनाया जाता इस दिन गरम भोजन

Neemuch headlines March 15, 2023, 7:41 am Technology

एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे। इतने में शीतला अष्टम का पर्व आया घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी, बेटे भी अभी छोटे हैं। इस कुविचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली। सास-बहू शीतला की पूजा करके आई, शीतला माता की कथा सुनी।

बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई। दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकालकर चूरमा किया और पेटभर कर खा लिया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई। सास ने कहा, 'बच्चे कब के सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन: करा लो.... बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृतप्रायः पाया ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरूप शीतला माता के प्रकोप से हुआ था।

बहुएं विवश हो गई। सास ने घटना जानी तो बहुओं से झगड़ने लगी सास बोली कि तुम दोनों ने अपने बेटों की बदौलत शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए अपने घर से निकल जाओ और बेटों को जिंदा स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना। अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकल पड़ी। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया यह खेजडी का वृक्ष था।

इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थीं । बहुओं ने थकान का अनुभव भी किया था। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली जूओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया। कहा, 'तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल ठंडा किया है, वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।

दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं, परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं है। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दूराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।

यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। अनजाने में गरम खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। पुनः ऐसा दुष्कृत्य हम कभी नहीं करेंगी। उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर दोनों माताएं प्रसन्न हुई। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे।

दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव प्रवेश करवाया बहुओं ने कहा, 'हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।' चैत्र महीने में शीतला अष्टमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी। शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर करें श्री शीतला मां सदा हमें शांति, शीतलता तथा आरोग्य दें।

जानिए नियम :-

1. शीतला पूजन के दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता।

2. जिस घर में चेचक रोग से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

3. इस दिन चक्की, चरखा, सिलाई न करें और ना ही सुई में धागा पिरोएं।

4. शीतला सप्तमी - अष्टमी पर सिर न धोएं।

5. इस दिन गर्म भोजन नहीं किया जाता है।

।। बोलो श्री शीतला माता की जय ।।

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