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कालो के काल महाकाल देवता ओर राजा के साथ वैज्ञानिक सत्य और तथ्य भी है जानिए कैसे हुई महाकाल की उत्पत्ति

Neemuch Headlines February 18, 2023, 10:15 am Technology

भारतीय ज्योतिष के विद्वान यह जानते है कि का सूर्योदय काल देशभर के लिए उदय काल माना जाता रहा है।

भार भारत के मध्य में उज्जैन और संभवतः वर्तमान) रोहतक नगरों के मध्य से जाने वाली देशात का सूर्योदय का प्रमाणिक सूर्योदय काल है। परिवर्तित ज्योतिषों में उसका नाम 'कोदवा रहा है। कोदय की देशांतर रेखा से पूर्व में तथा पश्चिम में स्थित स्थानों के सुर्वेद का काल ज्ञात करने की की हुई।

उज्जयिनी राजा विक्रमादित्य, इस प्रकार उज्जयिनी का सूर्योदय काल देशभर के लिए सूर्योदय और आधुनिक भाषा में उसे भारतका स्टैंडर्ड सकता है। ईसा पूर्व के यसको कहते थे। विध यों को दे रूप में स्वीकार करने की हमारे परपरा की है। इसी परंपरा के अंतकाल स्टैंडर्ड टाइम को देव रूप में दिया गया और मंदिर की स्थापना उनमें की गई उनको नागा भी एक है। जब एक ही देश के चौड़े भागती है कोमल दिया जाए। उत्तर यह है कि पर स्थित है उत्तरायण आता है और लौटकर गरेका क्षिण भाग में होता रेखा पर स्थित होने के कारण भारतीय प्रतिदिने उनकी माता उज्जैन की व्युत्पत्ति इसमें मान है।

प्राकृतनामा उनगरी' थे, जो एवं होतेः संस्कृतिकरण की यह प्रक्रिया कथासरित्सागर आदि में बहुत अधिक पाई जाती है। जैविकदेय के उदय की नगरी थी। भारतीय कथा साहित्य का दिन भी सूर्य का अन्ना विवेचन आगे किया। इस विद्यादित्य महाकाल उज्जयिनी की करने से नहीत होता है कि विक्रमादित नाम का वास्तविक नहीं था। ह दक्षिणानी सूर्य का ही कल्पित नाम है और उसे राजा क दिया गया है। जाने राजधानी उदचिनी अथवा बाद मे फिल्पित की गई और उसी नगरी का पूर्ण देश के एक आगे बढ़ पहुंच करने के लिए कुछ दूर तक में आगे बढ़कर पुनः नेकी के लिए 'सिंह' या प्रसिद्ध हुआ है।

उ दिक्षा में मलकर पुनः दक्षिण की और संक्रमण करने सूर्य सिंह किमी हुआ। वही सिंह राशिमुत्पत्ति है। सूर्य 31 दिन तक कर्क राशि पर रहकर 32 दिन सिंह पायसिंहासन बत्तीसी का रहस्य है। सूर्य सिंह राशि माना जाता है। आगे हाटा और अपने घर की तक आकर वहां आसीन होता है सूर्य की उस दक्षिणयात्राएं की जा रही है । सिंह के बाद सूर्य राशि में प्रवेश करता है संभवत भारतीय नहीं भूमंडल का था भूमि के भाग पर सूर्य राशियां सीधी पड़ती रश्मि के प्रारूप का पुनः के कारण सूर्य का रूपक भी इस वि' शब्द से होता है।

उत्तर भारत के ईसा पूर्वकालीन आर्यों की पुष्टि से वह कुमारी कन्याओं का प्रदेश का भारत का यह 10 भाग कुमारी कन्याओं का प्रदेश माना जाता था। उस प्रदेश पर सीधी किरण फेंकने याताया थाओं के उस देश की स्मृति के रूप में आज भी कुमारी अंतरीप का दर्शनीय का मंदिर जगत प्रसिद्ध है। दक्षिण की ओर बढ़ता हुआ सूर्य रेखा जाता है और वहां उसकी किरणें सीधी पड़ती है, तुला राशि पर पहुंचा हुआ माना जाता है। 'तुला' नाम रेखा पर जब सूर्य पहुंच जाता है कार और दक्षिण भाग बिलकुल राव हुआ होता है है। के बाद आगे बढ़कर जबकि राशि पर पहुंचता है तो राजविनी पर पड़ने की सूर्य की किल्ल उतनी ही होती है जिनका ढक होता है। उसे आगे बढ़ने पर पर किरण और भी अधिक हो जाती है और धनुष के समान दिखाई यह धनु का अर्थ है। उसके समुद्र के गरज पहुंचकर सूर्य का पुनः उत्तरायण रंभ होता है। अगल में पहुंचकर पुनः स्थल की ओर लौटने का है. यही की सकता है। यहां से करता हुआ सूर्य सर्व स्थल भाग के निकट आता है। वह भाग किसी समय संभवत पड़े के योग जैसा था और इसलिए 'घोण' नाम से प्रसिद्ध है,

जहां जैसा है। कुरान कोई द्वीप अगाध समुद्र में हो गया। उत्तर में बढ़ने पर अगाध समुद्राणी के नामपरका निवास है अतः यह मौन राशि प्रदेश कहां से आगे करके सूर्य कोदय की प्रसिद्ध नगरी लंका तक पहुंचता है और उससे यह 'वाय' कहलाया। वहीं भारतीय में नाम से नाग में अपनी सी को प्राप्त किया था। ह वर्तमान मैसूर के पास का प्रदेश है, जहां के में हाथियों की बहुलता है। यही सूर्य मिथुन राशि का स्वामी बनता है। उदय के भवन में पत्नी से (मिथुन) की कथा सूर्य के मिथुन राशि पर जाने की है। विधुन के बाद सूर्य उनी पति बन जाता है और अपनी ग पडुक्कर का होता है। कर्क का स्थल से की ओर जाने का होने के कारण वह वापस की ओर होता है। सूर्य के संबंधित ज्योतिष की पटना भारतीय साहित्य में एक रोचक कथा का रूप धारण कर चुकी थी और वृद्धजनों के मुख से यत्र-रात्र जाती थी जिस संवेदनेकिया है।

कथाको विदेशी दूधी ने भी सूर्य की गाथा का वृद्ध किया था और उसका वर्णन उद्धरण इस प्रकार है- (स) लोगों का और उसके दो प्रसिद्ध नगर एक मथुरा और दूसरा जिसके नदी बहती है की मा का राज्य दक्षिण में प्रदेश में है। हर उपनीय (स) से 15 पीढ़ी बाद हुआ अपने को कुलका मानते हैं। एज ऑफ द एंट के 101 पर शास्त्री ने इस उद्धरण की व्याख्या करने की कोशिश की है और मदुरा कोरा तथा बाला है। व्याख्यान है। 'मधुरा वास्तव में दक्षिण की नगरीयाओं के प्रदेश के राज्य और ऐसी की व्याख्या में ग्रीक के अनुवाद कर बैठे हैं। जिसमें की है और जी "अवन्ती' का शुद्ध अर्थ यह है कि दूसरी ऐन है जिसके पास नदी बहती है। सरन्ते (स) "हरिकृत (सूर्य) का ग्रीक रूप है और दावोनी (स) 'दिनेश' का कुरा होने के कारण स्वीकृत किए सिर से लोहा लेने वाले 'च' लोग यहा है। अक है। सौरसेन भी शूरसेन (सौरसेन) है। इस प्रकार के अर्थ यह हैकरों की दु और दूसरी शिया के किनारे अदन्ती में मुदरा में पांड रानी का राज्य है यह दिनेश से 15 पौड़ी बाद हुई शि लोग [भी] हरिकुल के ही है। को सुना था, उसकी घटन भी है और प्रतीकात्मक भी सूर्य उज्जयिनी में होता है और बहुरा में  परंतु होता है कि माता की इसके मन में ज्योतिष के करने का भारत के किया।

पतंजलि के "हाय" और सोमदेव के 'कार आदि यों को देखने से इस विषय पर कुछ प्रकाश पढ़ना है। भारतीय शिक्षाशास्त्रियों में किसी समय बहुत बढ़ा विवाद एकारणों का था, जो यह मानते थे कि विद्यार्थी व्याकरणका माध्यापन कराया जाए तथा ज्ञान विज्ञान की भाषा को नियंत्रित रखा जाए और उसमें अंतर नहाए के प्रयत्न के संस्कृत नामक जो लड़ाई हजार वर्षों भारत के ज्ञान-विज्ञान की रही है और स विविध कार अनुसार परिवर्तनशील भाकर 'देवताओं ने सेना की कि भाषा को नियंत्रि किया जाए और इंद्र ने उनका अनुशासन कर दिया। दूसरा वर्ग ऐसे लोगों का जो भाषा को नियमों से के पक्ष में नहीं थे। उनका भाषा और नीरस गद्य में करण बनाने की आवश्यकता का प्रतिपादन सत्य और ग रीतिका जाना चाहिए जिससे पाठक को विषय का ज्ञान भी हो आए और में बनी रहे।

परंतुकीक यों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कथा कानोड़ों का केवल उसके अंक में ही तीन रहता है और यह अन्योकि के रूप में व्यक्त किए हुए ज्ञान को ही नहीं 'थाहा' भवतः ज्योतिष भूगोल, इतिहास आदि अनेक विषय की मनोहरकाओं का समावेश किया गया था, परंतु पर पाठकों के लिए यह मनोहर कथा मात्र रह गई। उदय आदि की कथा लिखी गई थी और उनके द्वयोषिके करप्रतिपादन किया ऐका के कालकेयास्त्र उसके बाद एक बहुत समय भारतीय ज्योति के पलन का आया, जिस काल कोई नहीं है। इसीलिए ह के अर्थों में किसी प्रयुक्त होने 'महारा प्रयोगकर्तमान में प्राप्त किसी ज्योतिष शास्त्र के द में नहीं मिलता का उदयका ही नाम मैं भी प्रमुख उदय काल माना गया है। स्टैंडर्ड टाइम के अर्थों में जिस समय महाशब्द का प्रयोग होता था, समता के ज्योतिषशास्त्र में बहुत अि अणीता है। कया और 'बृहत्कथा' मंजरी आदि की कहानियों के आधार पर भूगोल इतिहास आदि के नेत किया जाता है। विद्वान लोग इस दिशा में कार्य करेंगे और भारतीय विस्तृत महाकाल को पूरा में लाएंगे प्रकार के अण से यह भी सिद्ध होकि कृतनामा शुद्ध भारतीय है. काम नहीं वास्तव में ग्रीक अनुवाद है।

यह भी विदित होगा कि भारतीय कथाओं की बहुत-सी नाला में परिभाषित शब्दों की बोधक है। इससे सांस्कृतिक समृद्धिका उद्घाटन भी होगा।

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