सम्यक्त की साधना कर समता मय जिवन जीयें--प.पू. श्री वनिता श्री जी मसा

मनोज खाबिया June 29, 2022, 6:02 pm Technology

कुकडेश्वर। नर से नारायण बनने के लिए सम्यक्त की साधना कर समता युक्त मार्ग की और चलने से बन सकते हैं नारायण।अनादि कॉल से हमारी आत्मा विषम भाव में रह कर राग द्वेष में रहते हुए संसार की परिभ्रमणा कर रही है। समतत्व गुण हमें समता भाव की ओर इंगित करता है हमें समभाव में रहना है।प्रभु की वाणी साधु के लिए ही नहीं, यह श्रावक के लिए भी है गृहस्थी भी अपने स्तर पर समता की साधना कर सकता है। अनेक साधु की अपेक्षा एक गृहस्थ का संयम भी उत्तम हो सकता है गृहस्थ जीवन भी तपोभूमि के समान है। समभाव में जीना होगा समभाव में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाना यही सद्गुण है यही समभाव है प्रभु की वाणी कह रही है समता का विकास करना होगा इससे गृहस्थ जीवन में शांति समाधि मिलेगी उक्त विचार हुकमेश संघ पटधर आचार्य 1008श्री वनिता श्री जी मा. सा.ने स्थानक भवन में नियमित प्रवचनों श्रृंखला व्यक्त कीयें।इस अवसर पर पुज्या श्री निष्ठा श्री जी मा. सा. ने कहा कि जो आत्मा भारी होती है वह संसार को पार नहीं कर सकती जो आत्मा हल्की होती है वह संसार को आसानी से पार कर लेती है हम भी इस संसार मैं रह रहे हम अपने कर्मों को कम कर रहे हैं या बड़ा रहे, चिंतन गहराई से करें आज हम शरीर को सजाने संवारने में लगे हुए हैं आत्मा की परवाह नहीं की आत्मा अकेली है यहां कोई किसी का नहीं ना कोई मेरा ना कोई तेरा अनुकूल स्थिति में सब साथ देने वाले हैं प्रतिकूल स्थिति में कोई साथ नहीं देता जब धन पास नहीं रहता तो परिवार वाले भी अकेला छोड़ जाते हैं यह हम जानते हैं लेकिन फिर भी संसार से विरक्ति नहीं संसार के आनंद में हम आत्मा को भूल रहे हैं, बहुमूल्य जीवन मिला इसे कोड़ियों के मोल में नहीं खोना है समय की पहचान कर हमें आत्मा का ध्यान रखना है बहुमूल्य समय को यूं ही नहीं गवाना है।

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